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लेप के कारण उनके अभिलेख भी छिप गये हैं। यहाँ से चार मील दूर नासिक नगर हैं जो हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है यहाँ एक जैन मन्दिर है।
कवि किशोरीलाल ने 'गजपन्थक्षेत्र पूजा-काव्य' की रचना कर तीर्थक्षेत्र के प्रति अपनी भक्ति का परिचय दिया है। इस काव्य में 49 पद्य छह प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। जिनमें अलंकारों और गुणों के कीर्तन से भक्तिरस की गंगा गजपन्थगिरि से प्रवाहित होती है। कुछ मनोहर पद्यों का परिचय इस प्रकार हैतीर्थक्षेत्र की स्थापना
श्री गजपन्ध शिखर जग में सुखदाय जी आठ कोडि मुनिराज परमपद पायजी। और गये बलभद्र सात शिवधाम जी
आवाहन विधि करूँ विविध धर ध्यान जी।। तीर्थ का महत्त्व
गजपन्थ गिरिवर शिखर उन्नत, दरश लख सब अघ हरै नरनारि जे तिन करत वन्दन, तिन सुजश जग विस्तरे। इस धान ते मुनि आठ कोडि परमपद को पाय के
तिनकों असें जयमाला माऊँ, सुनो चित हुलसाय कै! दण्डकवन, गंगानदी, नासिक तीर्थ का परिचय
यहाँ दुगडकवन की भमिसन्त, तत निकट शहर नासिक वसन्त । जहाँ गंगानाम नदी पुनीत, वैष्णव जन डाने धर्मतीर्थ।। पनि त्रिम्बकसीतागुफा कोन, गजपन्थ धाम जग में प्रचीन । भट्टारक जी हिमकीर्ति आच, वन्दे गजपन्थाशिखर जाय।।
मांगी तुंगीगिरि-क्षेत्र पूजा-काव्य मनमाड़ जंक्शन से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र बम्बई प्रान्त में शोभायमान है। बस एक मात्र साधन इस क्षेत्र को प्राप्त करने का है। श्री रामचन्द्र जी, हनुमान, सुग्रीव, गवय, गवाक्ष, नील, महानील आदि ५५ करोड़ मुनिराज तपस्या करते हुए इस पर्वत से मुक्ति को प्राप्त हुए। जंगल में इस क्षेत्र की शोभा प्राकृतिक दृष्टि से आते रमणीय है। चारों ओर फैली हुई पर्वतमालाओं के मध्य में मांगी और तुंगी पवंत निराली शान से खड़े हा हैं। पर्वत की चोटियाँ लिंगाकार दूर से दिखाई देती हैं। उन लिंगाकार चोटेयों के चारों तरफ़ गुफ़ा मन्दिर हैं । उपत्यका में दो प्राचीन मन्दिर हैं। वर्तमान में एक मानस्तम्भ, इस क्षेत्र के मस्तक
जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 29]