Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 354
________________ प्रातः प्रतिदिन भगवान महावीर स्वामी को प्रणाम करते हैं वं लोक में निदोष पवित्र होतं हा निश्चय से विषम (कष्टमय) संसाररूपी दु को पार करते है। य: भगवान महावीर तार्थंकर की भक्ति का सुफल है। सरस्वती स्तोत्र में उपासना का परिणाम : सरस्वत्याः प्रसादेन, काव्यं कुर्वन्ति मानवाः । तस्मान्निश्चलभायन, पूजनीया सरस्वती || सारांश-शिक्षित मानव सरस्वती के प्रसाद से काव्य की एवं कविता की रचना करते है, इसलिए एकाग्न मनोयोग से सरस्वती माता की नित्य उपासना करनी चाहिए। श्री सर्वज्ञमुखोत्पन्ना, भारती बहभाषिणी । अज्ञानतिमिरं हन्ति, विद्याबहुविकासिनी ॥ सारांश-सर्वज्ञदेव के मुख से निकली हुई, बहुभाषाओं का प्रयोग करनेवाली, बहुत विद्याओं तथा कलाओं का विकास करनेवाली भारती देवी अज्ञानातमिर का विनाश करती है। एतानि श्रुतनामानि, प्रातरुत्याय यः पटेतू । तस्य सन्तुष्यति माता, शारदा वरदा भवेत् ॥ तात्पर्य-जो मानव प्रातःकाल उठकर श्रने आदि अनेक नामवाली सरस्वती की उपासना करते हैं, उनके लिए सरस्वती माता प्रसन्न हो जाती हैं और शारदा देवी मनोरथ को प्रदान करनेवाली होती हैं। सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदं कामरूपिणी । विद्यारम्भं कारष्यामि, सिद्धिर्भवतु में सदा ॥ सार सौन्दर्य-हे सरस्वती माला ! आपकं लिता प्रणाम करत है, जप मनोरथ को प्रदान करनेवाली हैं और लोकिक एवं पारमायिक कार्यों को सिद्ध करनेवाली हैं। मैं विद्यारम्भ करूँगा अघचा कर रहा हूँ, आपके प्रसाद से मेरी सदा सिद्धि हो। बाझे मुहूर्ते उत्थाय, सर्वकार्याणि चिन्तयेत् । यतः करोति सान्निध्यं, तस्मिन् हृदि सरस्वती ॥ भावसौन्दर्य-प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में बिस्तर से उठकर सब आवश्यक कार्यों का विचार करना चाहिए और तदनुकूल समय पर कार्य करना चाहिए, कारण कि प्रातः हृदय में सरस्वती का निवास रहता है। इसलिए सभी कार्य सफल होते हैं। अथवा : 1. बाटोभसिंह सूरि : गघचिन्तापगि : सं. पं. पन्नालाल साहित्याचार्य, प्र. भारतीय ज्ञाानपोत. दहलो, पृ. 247 2481 35५ :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन

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