________________
पत्ता
श्रीखगईगिरिक्षेत्रं, अतिसुखदेतं. तुरतहिं भवधि पार करे। जो पूजे ध्यावं, करम नशा, वादित पावे, मक्ति चंग।'
कुन्धलगिरि क्षेत्र पूजा-काव्य बम्बई प्रान्तीय कन्थलागार पर्वत से श्री कुलभूषण और दशभूषण नियंग ने आत्म-साधना करते हा परमात्म पद को प्राप्त किया। पवंत बपि विशाल नहीं है तयापि अन्यन्त रमादा है। इसी को ब्रममा एलम में. निलजी के गापन्निर सहित दशमन्दिर निर्मित है। प्रकृति सौन्दयं आकर्षक है। नाघमाग में मन्ना का आयोजन होता है। वि.सं. 1932 में यहां के मन्दिरों का जीद्धार ईदा के गदारक कनक कीति जी के उपदेशों में प्रभावित होकर मेट हरिभाई दबकरण भी न कराया था। वहाँ पर ब्रह्मचर्याश्रम संस्था दर्शनीय है।
पं. कन्यालाल ने 'कन्थन्नगिरि क्षेत्र पूजा-काय' की रचना का अपना भक्तिभाव व्यक्त किया है। इसमें नेईम पद्य चार प्रकार के छन्त्रों में विचन हैं। कविता अलंकार एवं भकिारम में परिपूर्ण है। उदाहरणार्थ कछ पद्यां का निर्देश
क्षेत्र परिचय एवं स्थापना
दोहा
तीरथ परमपवित्र अनि. कन्य शेल शुभ थान । जहत मनि शिजवल गचं, पूजों धिग्मन आन।।
भक्ति से शक्ति का विकास
दोहा
तुम गुण जगम गया। गुरु, में पति कर हा वान्न । में सहाय तम भक्तिनश. यणा नव गणमान।
कुलभूषण-देशभूषण मुनिराज परिचय पद्धरी छन्द
कुल ऊंच राव सन अतिगंभीर, कुल भूषण दिशभूषण दो बीर । लख गजऋद्धि की जान अमगार, वय वानमाहि जप कठिन धार॥
१. यात पहावीर कीर्तन, पृ. 737115
जन पूना काच्या में नीर्थक्षत्र - 8