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से तथा मूर्तिलेखों से ज्ञान होता है। उरवाही द्वार के मूर्ति समूह में भगवान आदिनाथ की 57 फीट ऊँची मूर्ति चन्द्रप्रभ भगवान् की विशालकाय मूर्ति के लेखों में प्रतिष्ठाचार्य रइधू द्वारा प्रतिष्टित होना दर्शाया है। 'सम्मन्नगणणिहाणकव्य' तथा 'सम्माजणचरिउ' आदि स्वरचित काव्यों में कवियर न अनेक मूर्ति-निमाताओं का
और प्रतिष्ठाकारका का उल्लेख किया है। एक अभिलेख के अनुसार प्रतिष्ठाचार्य रहधू ने चन्द्रपाट नगर (वर्तमान चन्द्रवार फिरोजाबाद के निकट में चौहानवंशी नरेश रामचन्द्र और युवराज तापचन्द्र के शासनकाल में अग्रवाल वंशी संघाधिपति गजाधर
और भोला नामक प्रतिष्ठाकारकों के अनुरोध पर तीथंकर शान्तिनाथ के बिम्व की प्रतिष्ठा करायी थी।
कविवर के समय में ग्वालियर दुर्ग में दि. जैन मूर्तियों का अत्यधिक निपाण हुआ था। इस विषय का कावेवर ने स्वयं रचित 'सम्मत्तगुणिहाणकब्ब' ग्रन्थ में प्रमाणित किया है
"अगणिय जग पडिम का लक्खइ। सुरगुरु ताह गणण जड अक्खइ।"
अर्थात--गांपाचन दुर्ग में अगणित जैन प्रतिमाओ की प्रतिष्टा है। उनकी गणना करना असम्भव नहीं है।
कविवर की विद्वत्ता, गलसम्मान और लोकप्रियता को देखकर यह सिद्ध होता है कि ग्वालियर दुर्ग की अधिकांश मूर्तियों की प्रतिष्ठा कविवर के द्वारा सम्पन्न हुई
मूर्ति-निर्माता और प्रतिष्ठाकारक
कविवर इ चित ग्रन्थों में कहर एतं व्यक्तियों के उन्लेख आय हैं जिन्होंने मूर्तियों का नियांण और उनकी प्रतिष्ठा गांपाचल दग पा करायो है। तोमर वंश के शासनकाल में गोपाचन में जैनधर्म और संस्कृति से सम्बन्धित विविध समायोजन हए 1 मूर्तिलेखों तथा ग्रन्थ प्रशस्तियों से उस युग के शासकों के धर्मप्रेम का प्रशस्त परिचय प्राप्त होता है।
गोपाचल तीर्थ का पूजा-काव्य गोपाचल तीर्थ का ऐतिहासिक परिचय उपर्युक्त प्रकार है। उसके पूजा-काव्य की रचना ग्वालियर लश्कर निवासी कवि श्यामलाल जैन द्वारा की गयी है। इस पूजा-काव्य में 33 पय पाँच प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं।
इस पुजा-कान्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति आदि अलंकारों की वषां ते शान्तरत्त का प्रवाह उमड़ आया है। कविता के अध्ययन से प्रतीति होती है कि मावे के मानस पटल में तीर्थ के प्रति भक्तिरस का अपूर्व
SIYA :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन