Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 351
________________ जो मानव भक्तिभाव से भगवान् के दर्शन नहीं करता है उसको लक्ष्मी की प्राप्ति से होनेवाला सुख कसे हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता। हे भगवन् ! आज्ञ आपके चरणकमलों का दर्शन करने से हमारे इन दोनों नेत्रों की सफलता प्राप्त हो गयी है और हे त्रिलोकतिलक! अपके दर्शन से आज मेरे लिए वह विशाल संसार सागर, चुलुक प्रमाण प्रतिभासित होता है। वह सब भगवद्भक्ति का चमत्कार है || अद्याष्टकस्तोत्र में दर्शन एवं पूजन का मूल्यांकन : अद्य सौम्या ग्रहाः सर्वे, शुभाश्चैकादशस्थिताः। नष्टानि विघ्नजालानि, जिनेन्द्र! तब दर्शनात् ॥ अद्य कर्माष्टक नष्टं, दुखोत्पादनकारकम् । सुखाम्भोधिनिमग्नोऽहं, जिनेन्द्र! तब दर्शनात् ॥ अद्याप्टकं पठेद् यस्त, गुणानन्दितमानसः । तस्य सर्वार्थसंसिद्धिः जिनेन्द्र तव दर्शनातू ।' मावसौन्दर्य-भगवान के दर्शन-पूजन में दत्तचित्त एक भक्त कहता है कि हे जिनेन्द्रदेव! आज आपके दर्शन से ग्यारहवें स्थान में स्थित सभी अशुभग्रह शुभ हो गये हैं तथा सभी ग्रह शान्त हो गये हैं इसलिए हमारे जीवन में आनेवाले विघ्नों का समूह भी नष्ट हो गया है। भक्त पुनः कहता है कि हे परमात्मन्! आपकं दर्शन-पूजन से, दुःखदायक ज्ञानावरणादि अष्ट कम नष्ट हो रहे हैं इसलिए मैं सुखरूपी समुद्र में मग्न हो गया भक्त पनरपि कहता है कि हे परमेश्वर! आपके श्रेष्ठ गुणों का स्मरण या पूजन जो व्यक्ति प्रसन्नचित्त से करता है अथवा जो मानब इस अद्याष्टक स्तोत्र का पाठ करता है उसके सभी इष्ट प्रयोजनों की सिद्धि प्राप्त होती है। यह सय परमात्मा के दर्शन-पूजन का परिणाम है। ऋषिमण्डलस्तोत्र में भक्ति का मूल्यांकन : इदं स्तोत्र महास्तोत्रं, स्तुतीनामुत्तमं परम् । पटनात्स्मरणाज्जाप्यात् सर्वदोषैः विमुच्यते ॥ शतमष्टोत्तर प्रातः, ये पठन्ति दिने दिने। तेषां न व्याधयो देहे, प्रभवन्ति च सम्पदः || अष्टमासावधि यावत्, प्रातः प्रातस्तु यः पठेत् । स्तोत्रमतन्महातेजस्त्वहद्दिम्यं स पश्यति ॥ दृष्टे सत्याहंत बिम्बे, भवे सप्तमके ध्रुवम् । पदं प्राप्नोति विश्वस्तं, परमानन्दसम्पदा ।। 1. हुम्बुज भ्रमण सिद्धान्त पाठावलि, पृ. 4, ।। जैन पूजा-काव्यों का महत्त्व :: 335

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