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दर्शनं देवदेवस्य दर्शनं पापनाशनम् ।
दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम् ॥' भावार्थ-परमात्मा का दर्शन या पूजन सम्यक् श्रद्धा है वह पापों का नाश करनेवाला है, स्वर्ग को प्राप्त करने के लिए एक सोपान परम्परा है, तथा वह दर्शन मोक्ष की प्रांत करने का श्रेष्ठ साचन (कारण) है। धर्मशास्त्रों में भगवद्भक्ति का मूल्यांकन :
एकापि समर्थेयं, जिनभक्तिः दुर्गति निवारयितुम्।
पुण्यानि च पूरयतुं, दातुं मुक्तिश्रियं कृतिनः ॥ मावसौन्दर्य-श्रीपूज्यपाद आचार्य ने समाधि भक्ति में दांया है कि अकेली जिनेन्द्रदेव की भक्ति भी दुर्गतिगमन का निवारण करती है, पुण्य की प्राप्ति का कारण है और भव्य प्राणी को मुक्तिलक्ष्मी देने में समर्थ है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा भावपाहुइ में परमात्मभक्ति का मूल्यांकन :
जिणबरचरणांबुरुहं, णमति जे परमभत्तिराएण।
ते जम्मवेलिमूल, खणांति बरभाव सत्थेण । तात्पर्य-जो जिनेन्द्र भगवान के चरण कमलों को परमभक्ति भाव से प्रणाम करते हैं वे उज्ज्वल भावरूप शस्त्र के द्वारा जन्म-मरणरूपी बेल की जड़ को नष्ट करते हैं इसलिए जिनेन्द्रभक्ति को आत्मकल्याण के लिए, कल्पवृक्ष सदृश श्रेष्ठ समझना चाहिए। श्री सोमप्रभाचार्य के भक्तिरस में प्रयुक्त पूजा का मूल्यांकन :
पापं लुम्पति दुर्गति दलयति व्यापादयत्यापदम् । पुण्यं संचिनुते श्रियं वितनुते, पुष्णाति नीरोगताम् । सौभाग्यं विदधाति पल्लवयति प्रीतिं प्रसूते यशः
स्वर्ग यच्छति निवृत्तिं च रचयत्यार्हतां निर्मिता ॥' भावसौन्दर्य-शद्धभावों से रची गयी भगवान जिनेन्द्र की पूजा पापों का लोप करतो है, नरक आदि दुर्गतियों का दलन करती है, आपदाओं का नाश करती है, पुण्य को सोचत करती है, अन्तरंग एवं बहिरंग लक्ष्मी को बढ़ाती है, नीरोगता को पुष्ट करती है, सौभाग्य को प्रदान करती है, प्रीति वा वात्सल्य का पल्लवित करतो
1. पंचाम्तिकाय दोषिका : व्यारवाकर पं. सुपेरुपन्द्र दिवाकर, प्रका-शान्तिनाथ जैन म सिवनी,
म. . सन् 1986, पृ. 90 : 2 तथेत्र, पृ. ५। 1. नयेच. प. ५। 4. अभिषेक पूजा पाठ . सं. गतकार शास्त्री, प्र.-संयोगितागंज. इन्दौर. वीराब 2168, पृ. ,
प्राक्कयन।
जैन पूजा-काव्यों का मह: :: 353