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हे. कीति को उन्नत करतो है, स्वर्ग को प्रदान करती है, और मोक्ष को प्राप्त कराने में सहायक होती हैं। पुनश्न -
स्वर्गस्तस्य गृहांगणं सहचरी साम्राज्यलक्ष्मी शुभा सौभाग्यादि गणावलिः विलसति स्वैरं वपुर्वेश्मनि । संसारः सुतरां शिवं करतलकोडे लुठत्यंजसा
वः श्रद्धाभरभाजनं जिनपतेः पूजा विद्यते जनः ॥' भावसौन्दर्य-जो मानव श्रद्धा का पात्र होकर द्रव्य तथा भाव के साथ जिनेन्द्र 'भगवान का पूजन करता हैं उसके निवासगृह में स्वर्ग जैसा वातावरण हो जाता है. श्रेप्ट साम्राज्य रूपी लक्ष्मी उसकी सहचरी बन जाती है, सौभाग्य, सत्य, सदाचार आदि गुण उसकी आत्मा में शामित होने लगते हैं. वह विश्व के जन्म-मरण आदि कष्टी का जीत लेता है। अन्त में वह अविनाशी परमात्मपद का प्राप्त करता है। शान्तिभक्ति में लोन पूज्यपाद आचार्य द्वारा भक्ति का मूल्यांकन :
सम्पूजकानां प्रतिपालकानां, यतीन्द्रसामान्यतपोधनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्तिं भगवान् जिनेन्द्रः । प्रध्वस्तघातिकर्माणः, कंवलज्ञानभास्कराः ।
कुर्वन्तु जगतः शान्तिं वृपभाद्याः जिनेश्वराः ॥' सारांश-परमात्मा का पूजन करने के पश्चात् भक्त अपनी भावना व्यक्त करता है-पूजा करनेवालों के लिए, प्रजा के रक्षकों, आचार्यों, तपस्वियों के लिए तथा देश राष्ट्र नगर और नरेशों के लिए भगवान् शान्ति प्रदान करे।
दुःखप्रद कर्मों को नाश करनेवाले, विश्वज्ञान से विभूषित श्रीऋषभनाथ आदि चतुर्विंशति (241 तीर्थंकर, इस जगत में सब प्रकार स शान्ति का वातावरण उपस्थित करं। अहंभक्ति में निमग्न आचार्य पूज्यपाद का भक्ति में मूल्यांकन :
श्रीमुखालोकनादेव, श्री मुखालोकनं भवेत्। आलोकनविहीनस्य, तत्सुखाचाप्तयः कुतः ॥ अधाभवत्सफलता नयनवयस्य, देव त्वदीयचरणाम्युजवीक्षणेन !
अध त्रिलोकतिलक! प्रतिभासते में, संसारवारिधिरयं चुलक प्रमाणम् ॥ सारांश-अरहन्त भगवान के मुख का दर्शन करने से ही, ज्ञान दर्शन रूप अन्तरंग लक्ष्मी और स्वर्ग, राज्य, सम्पत्ति आदि बहिरंग लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
1. अभिषय पूजापाठ : सं. पं. राजकुमार शास्त्री, प्र.-संयोगितागंज, इन्दौर, वीराब्द 24GP, पृ. 5,
प्राक्कथन। 2. हुम्लुज श्रपणसिद्धान्त पाठावलि, पृ. 193-1341 9. धर्मध्यान दोपक, पृ. 149, अहंदुभक्ति ।
354:: जैन पूजा काय्य · एक चिन्तन