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गंगागकुमारा, कोडी पंचद्ध मुणिवरा सहिया । सबणागिरिवरसिहरे, गिव्याणगया णमो तेसिं ॥ नंग अनंग कुमार सुजान, पंचकोटि अरु अर्धप्रमान | मुक्ति गवं सोनागिर शीश, ते बन्दों त्रिभुवनपति ईश || '
इस क्षेत्र से योधेयदेश के श्रीपुरनरंश अरिंजय के पुत्र ( 1 ) नंगकुमार और ( 2 ) अजुंगकुमार तथा सहखां मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया। यहाँ 77 मन्दिर पर्वत पर और नीचे 16 मन्दिर हैं ।
सोनागिरि तीर्थ पूजा - काव्य
सोनागिरिं तीर्थ सातिशय महत्त्वपूर्ण है। उसके पूजा- काव्य की रचना कवि राजमल पवैया द्वारा की गयी है। यह पूजाकाव्य 23 पद्यों में हैं। इस पूजा - काव्य में उपमा, रूपक स्वभावोक्ति अलंकारों द्वारा भक्ति रस का प्रवाह गतिशील है। उदाहरणार्थ कुछ पद्यों का दिग्दर्शन इस प्रकार हैं
जम्बूद्वीप सुभरत क्षेत्र के मध्यदेश में अतिपावन, सिद्धक्षेत्र सोनागिर पर्वत, दिव्य मनोहर मनभावन । एक शतक जिनमन्दिर शोभित, चन्द्रप्रभ का समवशरण, वृषभादिक महावीर जिनेश्वर को प्रतिमाओं को वन्दन । हिंलादिक पांचों पापों में, सदालीन होता आया पाप पंक से रहित अवस्था पाने को प्रभु जल लाया । सिद्ध क्षेत्र सोनागिर चन्द्र वन्दूँ चन्द्रप्रभ जिनराय, नंग अनंग कुमार सुपुजें साढ़े पाँच कोटि मुनिराज ॥
बजरंगगढ़ तीर्थक्षेत्र पूजा
श्री शान्तिनाथ दि. जैन अतिशयक्षेत्र बजरंगगढ़ गुना मण्डल के मुख्यालय गुना से 7 कि.मी. दक्षिण दिशा की ओर है। यह क्षेत्र समतल भूमि पर अवस्थित है परन्तु चारों दिशाओं की पर्वतमाला के कारण यहाँ का प्राकृतिक दृश्य अत्यन्त मनोहर है । जिसका दर्शन करने से मानसकमल प्रफुल्लित हो जाता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस क्षेत्र पर शान्तिनाथ, कुन्धुनाथ, अरनाथ की विशाल, कायोत्सर्ग, मनोज्ञ प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
1. तु महावीर कीर्तन पं. पं. मंगल सैन जैन, प्र-जैन वीर पुस्तकालय श्री महावीर जी क्षेत्र (राज.), 1951 ५. 277279
123000 जैन पूजा काव्य एक वित्तन