Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 346
________________ भावसौन्दर्य - हे भगवन्! आपने राग, मोह, प्रीति आदि दोषों को दूर कर दिया हैं, इसलिए आपकी कोई पूजा करे तो भी आप प्रसन्न नहीं होते, और आपने द्वेष, क्रोध, मान, अप्रीति आदि दोषों को भी विनष्ट कर दिया है इसलिए आपकी कोई मानव यदि निन्दा करे तथापि आप किसी प्रकार भी रुष्ट नहीं होते, न शाप देते हैं, अपितु समताभाव धारण करते हैं। चाहे वह भक्त आपकी प्रशंसा करे अथवा निन्दा करे। इस विषम परिस्थिति में भी आप शान्त रहते हैं। तथापि आपके पवित्र गुणों की पूजा, स्मरण, स्तुति, कीर्तन, हम सद्भक्त जनों के मानस पटल को, पाप व्यसन एवं कष्टों को दूर कर पवित्र कर देते हैं अर्थात् आपकी यथार्थ पूजा करने से मानव के चित्त पवित्र हो जाते हैं। श्री कुन्दकुन्दाचार्य के मत से पूजा का मूल्यांकन : जो जाणदि अरहंत दव्यत्तगुणत्तपज्जयत्तेईि । तो जाणदि अप्पाणं, मोहो खलु जादि तस्स लयं ॥ तात्पर्य - जो पुरुष अरहन्त भगवान् को द्रव्य, गुण, पर्याओं से जानता है वह पुरुष निज आत्मस्वरूप को जानता है और निश्चय से उस पुरुष के मंड, राग, द्वेप आदि दोष नाश को प्राप्त होते हैं। इसका स्पष्ट भाव यह है कि कुन्दकुन्दाचार्य एक आध्यात्मिक महर्षि हैं। उन्होंने अपने ग्रन्थ में आध्यात्मिक विष की दृष्टि सं गुणस्तवन या पूजा का साफल्य दर्शाया है जो व्यक्ति अरहंत (जीवन्मुक्त) परमात्मा के आत्मद्रव्य को, उसके ज्ञान, दर्शन आदि गुणों को तथा मनुष्य जीवन्मुक्त आदि पर्याय (दशाओं) को जानता है। श्रद्धान करता है एवं तदनुकूल आचरण करता है। यही उनका स्तवन गुणकीर्तन या पूजन है, इस प्रकार का श्रद्धान ज्ञान अपने आत्मा का भी करता है कारण कि सब आत्माओं का स्वभाव समान ही है। निश्चय से उस पुरुष के मोह आदि विकार नाश को प्राप्त होते हैं। आचार्यकल्प पण्डितप्रवर आशाधर के मत से पूजा का मुल्यांकन : यथाकथंचिद्भजतां, जिनं निर्व्याजचेतसाम् । नश्यन्ति सर्वदुःखानि दिशः कामान् दुहन्ति च ॥ भावसौन्दर्य - यथाशक्ति साधनों के द्वारा शुद्धभावपूर्वक जिनेन्द्र परमात्मा की पूजा करनेवाले भक्त मानवों के सब प्रकार के दुःख नष्ट होते हैं और दिशाएँ उनके मनोरथों को पूर्ण करती हैं अर्थात् चारों ओर से उनके सब श्रेष्ठ कार्यों की सिद्धि होती है। यह सब सत्यार्थपूजन से प्राप्त हुए पुण्य का प्रभाव हैं। अपि च : 1. कुन्दकुन्दाचार्य : प्रवचनसार सं. आदिनाथ उपाध्याय, प्रकाशक - श्री राजेन्द्र शास्त्रमाला अगास, वि. सं. 2021 पृ. 911 350 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन

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