Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 306
________________ शोभायमान है। इस संख्या में बाहुबलि मन्दिर की 24 मदियों और चौबीसो मन्दिर के 24 शिखर वाले मन्दिरों की गणना सम्मिलित है। जैन मन्दिरों की यह नगरी अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, उद्यान और शान्त वातावरण के कारण आत्मसाधकों एवं भक्त श्रावकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। साथ हो कलाप्रेमी, शोधक और इतिहासकारों के लिए भी उपयोगी है। श्री पपौरा क्षेत्र पूजा-काव्य के रचयिता पं. दरयावसिंह के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस पूजा-काव्य में सम्पूर्ण 23 पद्य पाँच प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। कविता में प्रसाद गुण एवं उपमा, रूपक आदि अलंकारी से भक्तिरस की धारा प्रवाहित होती है। इस पूजा-काव्य के कतिपय पद्य अतिशय क्षेत्र प्रधान अति गम पपौर जान। टीकमगढ़ से पूर्व दिश, तीन मील परमान।। पचहत्तर जहाँ लसत हैं, जिन मन्दिर सुखकार । जिन प्रतिमा तिहिं मधि लसैं, चौबीसों दुखहार।' अहार क्षेत्र मध्यप्रदेश के प्राचीन स्थलों में अहार क्षेत्र का नाम उल्लेखनीय हैं। अनेक जैन सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्रों की तुलना में यह अहार क्षेत्र भी एक सांस्कृतिक केन्द्र है। विन्ध्यक्षेत्र के टीकमगढ़ जिला में अवस्थित यह क्षेत्र पर्वतीय प्राकृतिक भूमि को हरित अरण्यावली में शोधावमान है। टीकमगढ़ से यह क्षेत्र प्रायः 25 किलोमीटर की दूरी पर अपनी सत्ता व्यक्त करता है। श्री अहार तीर्थ स्तवनम् स्व, ब्र. पं. वारेलाल जैन राजवैध, टीकमगढ़, म.प्र. मध्यप्रदेशोय मथाभिरामं, चन्देल बुन्दल नरेन्द्रशिष्टम् । तपोवनं जैन मुनीन्द्रपूतं, अहारक्षेत्रं प्रणमामि नित्यम्॥ यतस्ततो पत्र विशालछाया, अनोकहास्ते फलपुष्पनम्राः । मत्ता निहंगा हि न दन्ति तत्र, अहार तीर्थं प्रणमामि नित्यम्। स्वच्छं पवित्र स्फटिकप्रभ व, समन्ततो यत्र दधाति तोयम्। सरोवरो यम्मदनेशनाम, अहारतीय प्रणमामि नित्यम्॥ निर्मापितो यो मदनेशराज्ञा, पद्मांचितां यत्र च मत्तशृंगाः । नदन्ति नाव यशोनृपस्य अहारतीर्थं 1. वृहद् महावीर कीर्तन : पृ. 835-837 310 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन

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