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भट्टारक गुणकीर्ति ने मराठी भाषा की तोर्थवन्दना में लिख है । "मंदगिरि आहूढ़कोडि मुनि सिद्धि पावलेत्या सिद्धासि नमस्कारू माझा "
इन शब्दों द्वारा पंड़गिरि के साढ़े तीन करोड़ निर्वाण प्राप्त मुनियों को नमस्कार किया है। किन्तु ज्ञान सागर, सुमति सागर, विमप्णा पण्डित, सोमसेन, जयसागर आदि विद्वानों ने भाषाग्रन्थों में इस क्षेत्र का नाम 'मुक्तागिरि' दिया है। इससे ज्ञात होता हैं कि इस क्षेत्र का प्राचीन नाम मेण्द्रगिरि रहा होगा, पश्चात् इस क्षेत्र को 'मुक्तागिरि' इस नाम से सम्बोधित करने लगे ।
मुक्तागिरि निर्वाणक्षेत्र या सिद्धक्षेत्र है, कारण कि इस क्षेत्र से तीन कोटि ( करोड़) पचास लक्ष मुनिराज मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। प्राकृत एवं हिन्दी निर्वाण काण्ड
ग्रन्थ का प्रमाण
अच्चलपुरवरणयरे ईसाणे भाए मंदगिरि सिहरे । आहुटूयकोडीओ, णिव्यागगया णमो तेसिं ॥
हिन्दी अनुवाद
अचलापुर की दिश ईशान, तहाँ मेढगिरि नाम प्रधान । ताद्रे तीन कोड़ि मुनिराज तिनकं चरणनयूँ चितलाय ।।
(1) मलखेड (प्राचीन मान्यखेट)
गुलबर्गा के समीप ही खेडम तालुक में एक द्वितीय महत्त्वपूर्ण प्राचीन जैन केन्द्र मलखंड है। यांदे इस स्थान को प्रचलित नक्शे में खोजा जाए तो नहीं मिलेगा, क्योंकि यह स्थान इस समय सरम (सेडक तहसील में कंगना नदी के किनारे) पर अवस्थित लघु परिमाण अल्प आवादीवाला एक ग्राम है। यह गुलबर्गा से रोडमार्ग द्वारा प्रायः 35 कि.. पी. की दूरी पर स्थित है और मध्य रेलवे की बड़ी लाइन कं बाड़ी - मिकन्दराबाद रेलमार्ग पर 'मलखेडरांड' नामक एक लघु रेलवे स्टेशन है, यहाँ ने नलखेड स्थान प्रायः छड़ कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है।
ऐतिहासिक महत्त्व
जैन धर्मावलम्बी राष्ट्रकूट राजाओं ने मलखेड (प्राचीन मान्यखेट) में 753 ईस्वी से लगभग 200 वर्षों तक राज्य किया था। दक्षिण के इस राज्य ने अपने उत्कर्ष काल में इस प्रदेश के इतिहास में वैसी ही महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था जैसा कि 17वीं शताब्दी में मरहठों ने निर्वाह किया। इस वंश का सबसे प्रभावशाली नरेश अमोघवर्ष सन् 814 से 878 तक शासक रहा। उसने इस राजधानी का विस्तार
930 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन