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अलंकार तथा स्वभावोक्ति की छटा से शान्तरस को प्रवाहित किया गया है। उदाहरणार्थ कतिपय पद्यों का दिग्दर्शन
स्थापना-अडिल्ल छन्द
पावन परम सुरम्य द्रोणगिरि नाम है सिद्धक्षेत्र सुखदाम सुउत्तम धाम है। हरिता पुरी मदत महामुनी
मुक्ति गये धरधान जिनागम में सुनी।' रेशन्दी गिरि तीर्थ
मध्यप्रान्तीय छतरपुर मण्डल के अन्तर्गत रेशन्दी गिरि तीर्थ निर्वाण क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। रेशन्दो गिरि का शुद्ध संस्कृत शब्द ऋषीन्द्रगिरि है। कारण कि इस पर्वत से वरदन आदि पंच ऋषिराज निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। इसका द्वितीय नाम नैनागिरि भी प्रसिद्ध है। प्राकृत निर्वाणकाण्ड स्तोत्र में इस क्षेत्र के विषय में उल्लेख किया गया है
पासस्स समवसरणे, सहियावरदत्त मुणिवर पंच।
रिस्सिदे गिरिसिंहरे, णिवाण गया णमोतेसिं। सारांश-23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के समवशण में आत्पड़ित के इच्छुक श्रीवरदत्त आदि पंच ऋषिराज तपश्चरण करते हुए रेशन्दीगिरि के शिखर से निर्वाण को प्राप्त हुए हैं, उनके लिए नमस्कार हो।
कवि भगवती दास ने उक्त प्राकृत गाथा का हिन्दी में पद्यानुवाद इस प्रकार
समवसरण श्री पाच जिनन्द, रेसिन्दीगिरि नयनानन्द ।
वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते वन्दौ नित धरमजिहाज।। सारांश-इस क्षेत्र पर जब भगवान् पार्श्वनाथ का समवसरण आया, उसी सपय वरदत्त, मुनीन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, गुणदत्त और सायरदत्त इन पाँच मुनिराजों ने तपश्चरण करते हुए शुक्लध्यान के द्वारा अष्टकर्मों का नाश कर निर्वाणपद को प्राप्त किया।
1. द्रोणगिरि अचना : पं.. गोरेलाल शास्त्री. ज. सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि ट्रस्ट, टोणगिरि (उत्तरपुर), 14866,
पृ. 5-16
314 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन