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एवं धार्मिक दृष्टि से भारत में प्रसिद्ध है इसलिए इसका अर्धन-पूजन किया जाता है। श्री महावीर क्षेत्र पूजाकाव्य
विक्रम को 20वीं शताब्दी में कवि पूरनमल द्वारा श्री महावीर क्षेत्र पूजा-कान्य की रचना की गयी है। इस पूजाकाव्य में 37 पद्य 6 प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। इस पूजा-काव्य में अलंकार, गुण एवं सरलरीति द्वारा मानस सरोवर में भक्ति रस की तरंगें उच्छलित होने लगती हैं। उदाहरणार्थ कुछ पद्यों का दिग्दर्शन इस प्रकार हैस्थापना
श्री वीरसन्मति गाँव चाँदन में प्रकट भये आयकर जिनको वचन मन काय से मैं पूजहूँ शिरनायकर, हुए दयामय नारिनर लखि शान्तरूपी भेष को तुम ज्ञानरूपी भानु से कीना सुशोभित देश को, सुर इन्द्र विद्याधर भुनी नरपति नमा शीस को हम नमत हैं नित चावसों, महावीर प्रभु जगदीश को।।
(2) श्री ऋषभदेव तीर्थक्षेत्र का पूजा-काव्य श्री ऋषभदेव तीर्थ राजस्थान प्रदेशीय उदयपुर मण्डलान्तर्गत उदयपर नगर से 154 कि.मी. दूर, खेरवाड़ा तहसील में, कोयल नामक लघु नदी के तट पर अवस्थित हैं। ग्राम का नाम धुवेल है, जिसकी जनसंख्या प्रायः 5000 है। इस ग्राम के उत्तर
और पश्चिम में नदी तथा दक्षिण में पहाड़ी नाला है। यह गाँव ऋषभदेव की मूल नायक प्रतिमा के प्रकट होने के पश्चात् बसाया गया है। भगवान ऋषभदेव के नाम पर ग्राम का नाम भी ऋषभदेव तथा पूजा में केशर अर्पण करने की प्रथा के कारण केशरिया तीर्थ प्रसिद्ध हो गया है।
यहाँ पहुँचने के लिए पश्चिमी रेलवे के उदयपुर स्टेशन से ऋषभदेव तक पक्की सड़क है।
इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व एवं धार्मिक दृष्टि से ऋषभदेव (केशरियानाथ) तीर्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है अतएव आत्महितार्थ इसका अर्चन किया जाता है।
श्रीऋषभदेव तीर्थ के पूजा-काव्य के रचयिता का नाम अज्ञात है, परन्तु बृहद्महावीरकीर्तन के पृष्ट 821 की टिप्पणी से ज्ञात होता है कि वि.सं. 1760 में लिखित, एक जीर्ण-शीर्ण ग्रन्थ से यह पूजा-काव्य संग्रहीत हैं। यह ग्रन्थ अंकलेश्वर
गुजरात प्रान्त) के किसी जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार से प्राप्त हुआ था। इस पूजा-काव्य में कुछ पद्य शुद्ध संस्कृत भाषा में और कुछ पद्य राजस्थानी भाषा में
324 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन