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गये हैं। इन पद्यों में शब्दालंकार, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा और स्वभावोक्ति अलंकारों को छटा से शान्तरस की वर्षा की गयी है। पांचाली रीति के माध्यम से प्रसाद गण का चमत्कार इस काव्य में दर्शाया गया है। उदाहरणार्थ कतिपय पयों का दिग्दर्शन इस प्रकार हैमत्तगयन्द छन्द-यमकालंकार
या भवकानन में चतुरानन, पाप पनानन घेरी हमेरी, आतम जानन मानन ठान, न, बान न होन दई सठ पेरी। कालद भा- गरि हो , शन व लान नपानन रेरी
आन गही शरनागत को अब, श्रीपत जी पत राखहु मेरी।। जल अर्पण करने का पद्य-चाल अष्टक
हिमगिरिगत गंगा, धार अभंगा, प्रासक संगा भरिभंगा, जरमरनमृतंगा, नाशि अभंगा, पूजिपदंगा मदहिंगा। श्रीशान्ति जिनेशं, नुतशक्रेशं, वृषचक्रेशं चक्रेशं हनि अरिचक्रेशं, हे गुणधेशं, दयामृतेशं मवेश।'
कुण्डलपुर तीर्थक्षेत्र का परिचय और पूजा-काव्य कुण्डलपुर तीर्थक्षेत्र मध्यप्रदेश के दमोह जिले में अवस्थित है। यह क्षेत्र बीना-कटनी रेलमार्ग के दमोह स्टेशन से ईशान कोण में 95 कि.मी, और दमोह-पटेरा पक्के रोड़ पर पटेरा से 5 कि.मी. की दूरी पर विद्यमान है।
इस क्षेत्र में पर्वत के ऊपर और नीचे तलहटी में मन्दिरों की कुल संख्या 60 है। इनमें से मुख्य मन्दिर 'बड़े बाया का मन्दिर' कहा जाता है। पर्वत पर इस मन्दिर का नं. 11 है। बड़े बाबा की मूर्ति पद्मासन, अवगाहना (ऊँचाई 12 फीट 6 इंच तथा चौड़ाई 11 फीट 4 इंच है।
इस तीर्थक्षेत्र पर कुल 60 मन्दिर शोभायमान हैं जिनमें चालीस मन्दिर पर्वत पर और नीचे भूमि समतल पर 20 मन्दिर निर्मित हैं। धर्मशालाओं के मध्य मैंदान में एक विशाल संगमरमर का मानस्तम्भ निर्मित है। यहाँ धर्मशालाओं के निकट वर्धमान सागर नामक एक विशाल सरोवर शोभित है। इसके घाटों और सोढ़ियों का निर्माण इतिहास, प्रसिद्ध महाराज छत्रसाल ने कराया था।
कुण्डलपुर क्षेत्र का पूजा-काव्य
कुण्डलपुर क्षेत्र पूजाकाव्य की रचना पं, मूलचन्द्र वत्सल द्वारा की गयी है।
1. बृहद् महावीर कीर्तन, पृ. 184-187
916 :: जैन पूजा काञ्च : एक चिन्तन