Book Title: Jain Pooja Kavya Ek Chintan
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 316
________________ मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त भगवान पार्श्वनाथ की दो मूर्तियाँ सं. 1242 की प्रतिष्ठित हैं। एक धातुनिर्मित मूर्ति सं. 1487 की प्रतिष्ठित है। वि. सं. और 1939 की प्र, मूर्तियों की संख्या बहुत है। इससे प्राचीनता सिद्ध होती है। चूलगिरि सिद्ध क्षेत्र पूजा-काव्य __ चूलगिरि सिद्धक्षेत्र पूजा-काव्य की रचना कवि छगनलाल द्वारा भक्तिभाव के साथ की गयी है। इस काव्य में 25 पंचों का सृजन पाँच प्रकार के छन्दों के प्रयोग से किया गया है। इस काव्य के पद्यों में उपमा, रूपक, उप्रेक्षा, स्वभावोक्ति आदि अलंकारों द्वारा, प्रसाद, गुण एवं सरलरोति के प्रयोग से शान्तरस की धारा प्रवाहित की गयी है आयां क्षेत्र विहारधोधभवि ये, दशग्रीव सुत भ्रातना, सम्यक्त्वादिगुणाष्ट्र प्राप्ति शिव में, कारिघाती घना। ता भगवान प्रति प्रार्थना, सुधहृदै त्वद् भक्ति मम यासना, आह्वानम विमुक्तनाथ तु पुनः अत्राय तिष्ठो जिना पावागिरि (ऊन) सिद्धक्षेत्र श्री पावागिरि सिद्धक्षेत्र मध्यप्रदेशीच खरगौन मण्डल में ऊननामक स्थान से दो फलांग दूर दक्षिण दिशा में अवस्थित है। ऊन एक कस्बा है जिसकी जनसंख्या प्रायः 4000 है। ऊन से खरगौन 18 कि.पी. दूर हैं। खरगौन से जुलवान्या जानेवाली सड़क के किनारे ही ऊन में दि. जैनधर्मशाला निर्मित है। धर्मशाला से पावागिरि सिद्धक्षेत्र केवल दो फलांग दूरी पर है। इस क्षेत्र को आने के लिए खण्डवा, इन्दौर, सनावद और महू से वस व्यवस्था सर्वदा विद्यमान है। पावागिरि क्षेत्र के पूर्वभाग में चिरूढ नदी बहती हैं, पश्चिम में कमल तलाई तालाब है, उत्तर में ऊनग्राम है, दक्षिण में एक कुण्ड बना हुआ है जिसे नारायण कुण्ड कहा जाता है। वैष्णव समाज इसको तोर्थ मानते हैं। इस क्षेत्र के पश्चिम में चूतगिरि और उत्तर में सिद्धयर कूट क्षेत्र विद्यमान हैं। इस पावागिरि क्षेत्र से स्वर्णभद्र आदि चार मुनिराज मोक्ष को प्राप्त हुए। इस विषय में सन्धित उल्लेख प्राकृत निर्माणकाण्ड में उपलब्ध होता है, यथा "पावागिरिवरसिहरे, सुवण्णभद्दाई मुणिवरा बउरो। चलणाणईतडग्गे, णिवाणगया णमो तेसि ॥"" १. भारत के दिगम्बर जैन नीथं, भाम तृतीय, पृ. 287-299 १. बृहद् पहावीर कीर्तन, पृ. 756-758 3. तथैव : सं. मंगलसैन विशारद, पृ. 277 12 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन

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