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प्राचीन एवं दो शिखरबाल बड़े मन्दिर को प्रायः 21 बर्ष पूर्व, कटक के सुप्रसिद्ध दि. जैन श्रावक स्व. चौधरी मंजूलान्न परवार ने निर्माण कराया था। इस मन्दिर से भी प्राचीन प्रतिमाएं इसमें विराजमान हैं। मन्दिर के पीछ की और सैकड़ों भग्नावशेष, पाषाण खण्ड आदि पड़े हुए हैं जिनमें चार प्रतिमाएँ नन्दीश्वर की अनुमानित को जातीय स्थान काम करते हैं। आशा काम का जलपूर्ण कुण्ड हैं, इसमें मुनियों के ध्यान योग गुफायें हैं। आगे गुप्त गंगा, श्याम कुण्ड और राधाकुण्ड नाम के कुण्ड शोभित हैं। फिर राजा इन्द्र केशरी की गुफा में आठ दि. जैन कायोत्सर्ग प्रतिमाएं हैं। तदुपरान्त चौबील तीयंकरों की दि. प्रतिमा कित आदिनाय गुफा हैं। अन्त में बारह मजी गुफ़ा में भी चौबीस जिनप्रतिमाएँ यक्षिणी देवी की मूर्ति सहित शोभायमान हैं। निकट में पुरीनामक हिन्दुओं का श्रेष्ट तीर्थस्थान है। जगन्नाथ पुरी के मन्दिर के दक्षिा द्वार पर श्री आदिनाथ की मनोहर प्रतिमा विराजमान है।
खण्डगिरि-उदयगिरि क्षेत्र पूजा-काव्य -इसकी रचना श्री मुन्नालाल द्वारा की है। इस काव्य में तेतीस पद्य पाँच प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। जिनमें अलंकारों एवं प्रकृति का वर्णन होने से भक्ति रस की धारा प्रवाहित होती है। उदाहरणार्थ कतिपय प्रमुख पद्म उद्घाटित हैक्षेत्र का सामान्य परिचय
अंग बंग के पास है. देश कलिंग विख्यात ।
ताम खण्ट्रगिरि नखत, दर्शन भये सुखात।। अडिल्ल छन्द्र पूजार्थ क्षेत्र की स्थापना
दशग्ध राजा के सत अति गणवान जी
और पुनीश्वर पाँच संकड़ा जान जी। आट करम कर नष्ट माझगामी भये निनक पृजहं चरण मकल मंगल टये।। पुन बनकर दगिरि लाजाय, भारी भारी ज़ गफा लखाय । एक गुफा में जिन विराजमान. पदमासन घर प्रभु करत ध्यान।।
पूजा और वन्दना का फल
वन्दत पव मुख जाय पलाय, संबक अनुक्रम शिवपद लहाय। ता क्षेत्र की पूजा में त्रिकाल, कर जोड़ नमत हैं मुन्नालाल।।
24 :: जैन पूजा काय · + चिन्ता