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है जिसका सरकार ने बनवाया है। इसकी दीवारें छह फुट उन्नत हैं, छत झुकावदार है। इस गुफा की दीवारों पर लेख भी किन्तु वे प्रायः अस्पष्ट और अपाठ्य हैं। द्वार के वाम ओर की दीवार पर एक शिलालेख की कंवल दो पंक्तियाँ पुरातत्त्ववेत्ताओं ने पढ़ पायी हैं जो इस प्रकार हैं
निर्वाणलाभाय तपस्वियोग्य शुभे ग्रहऽहंप्रतिमाप्रतिष्ठे।
आचार्यरत्नं मुनिवरदेवः विमुक्तयेऽकारवदूर्ध्व तेजः॥ राजगृही तीर्थ पूजा-काव्य
इस विशाल ऐतिहासिक सर्वप्रिय राजगृहोतीर्थ के पूजा-काव्य का नृजन बीसवों शर्ती के कवियर मुन्नालाल न किया है एवं तीर्थ के महत्व को दर्शाया है। इस पूजाकाव्य में 52 पद्य नव प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। कावे ने अलंकारों की कान्ति से पूजा-काव्य रूप शरीर का मनोहर बना दिया है। इस काव्य का भक्तिरस हश्य को आप्लावित कर देता है। कुछ विशिष्ट उद्धरण
मगधदेश की राजधानि सोहे सही राजगृही विख्यात पुरातन हे मही।
तिस नगरी के पास महागिरि पाँच हैं
अति उत्तंग तिन शिखर सुशोभ लहात हैं।। विपुलाचल रतना यागिरि जानिए सोनागिरि व्यवहार मुगिरि शुभ नाम थे।
तिनकं ऊपर पन्दिर परम विशाल जी
एकोनविंशति वन, त पूजहु 'लाल' जी।। प्राचीन विहार-बंगाल उत्कल प्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थों की सूची
बज्जि-विदह जनपद : (1) वेशाली - कुण्डग्राम (कुण्डलपुर), 2) मिधिलापुरी। अंग जनपद : (1) चम्पापुरी, (2) मन्दारगिारे। मगध जनपद : (1) राजगृही, 12) पावापुरी, (3) गुणाबा, (4) पाटलिपुत्र । मांग जनपद : (1) सम्मेदशिखर, (2) मद्रिकापुरी-कुलुहा पहाड़। बंग जनपद : (1) कलकत्ता-तिहासिक स्थान। कलिंग जनपद : (1) कटक, (2) भुवनेश्वर, (३) खण्डगिरि-उदयगिरि, पुरी इक्षिणकांशल देश : (1) कोटिशिला-सिद्धशिला। ___ग्वालियर (गोपाचल) का ऐतिहासिक परिचय
प्राचीन काल में ग्वालियर का महान् राजनीतिक महत्त्व रहा है। अनेक राजनीतिक घटनाएँ वहाँ घटित हुई हैं। दक्षिण भारत का द्वार होने के कारण इसको
जैन पूजा-काञ्चों में तीर्थक्षेत्र : 311