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पर बीसवें तीर्थकर मुनि सुव्रतनाथ के गर्भकल्याणक, जन्मकल्याणक, दीक्षाकल्याणक
और कंबलज्ञान महोत्सव हाए हैं। राजगृह नगर में श्रावणकृष्ण द्वितीया के शुभ समय में श्री मुनि सव्रत-तीर्थकर का गर्भकल्याणक महोत्सव हना।
जन साहित्य तथा अन्य साहित्य में राजगृह के अनेक नाम प्राप्त होते हैं, जैसे गिरिद्रज, क्षितिप्रतिष्ठ, वसुमती, चणकपुर, ऋषभपुर, कुशाग्रपुर, राजगृह और पंचशैल । जैन दर्शन के महान् ग्रन्ध षट्खण्डागम का उल्लेख
पंचसैलपुरे रम्भ, विउल पवटुत्तमं । णाणादुम समाइराणे, देव-दाणव वंदिदे||
महावीरेणत्यो कहिओ भवियलोयस्स ।' तात्पर्य-पंचशेलापुर (राजगृह) में रमणीच, नाना प्रकार के वृक्षों से व्याप्त, देव और दानवों से बन्दित एवं सर्व पर्वती में उत्तम- ऐस विपुलाचत पर्वत के ऊपर भगवान महावीर ने भव्य जीवों को उपदेश दिया। इस ग्रन्थ में पंच शैलपुर के पंच पवंतों के नाम इस प्रकार हैं-(1) ऋषिगिरि. 2) वैभार, (3) विपुलगिरि, (4) लिन्नागरि, 15; पाण्डागरि।
सरखेयरमणहरणे, गुणणाम पंचसंलणवरम्मि।
विडलम्मि पञ्चदवरे, बीजिणां अट्ठकला। भावार्थ-देव तथा विद्याधरों के मन को हरण करनेवाला, सायंक नाम चुक्त पंचशैल नगर में स्थित श्रेष्ठ विपलगिरि पर भगवान महावीर की दिव्य देशना प्रारम्भ हुई। वास्तव में गजगृष्ठ को 'पंचशैलपुर' इस सार्धकवाला कहा जाता है। इस ग्रन्थ में पाँच नान इस प्रकार हैं... (1) ऋषिशैल, 21 वैभार, 9 विपलगिरि, (4) छिन्नगिरि, (5 पाण्डुगिारे।
महाभारत (सभापर्व-21) पंचर्शलों के नाम इस प्रकार हैं-11) वैभार, (2) वराह, वृषभगिरि, (4) ऋषिगिरि, (:) चत्वाति
बौद्धदर्शन कं पालिनन्थों में पंचशैलों के नाम-1 गिज्मकूट, (2) इसिगिल, [3) वैभार, (4) पुल्ल.) पाण्डयगिरि। सोनभण्डार गुफा
इस पवंत के दक्षिणी ढलान पर दो गुफ़ाएँ हैं। एक पश्चिम की ओर और द्वितीय पूर्व की ओर । पश्चिमी गुफ़ा में 6 फुट का द्वार है. एक गवाक्ष (खिड़की) 1. पुष्पदन्त-भूतवालप्रणात षटखण्डागम : सत्प्ररूपणा-1, सं. डॉ. ग़ताग. प्र.-जैन संस्कृति संरक्षक __ संघ लासपुर-५, पृ. 62. सन् 1973 2. यातेवृषभाचार्य : तिलोयपणांत्ते 1 : सं. डॉ. होरालाल जैन, प्र.-जैन स.सं.सं. सोलापुर.
पृ. 1/66-67, सन 1951
300 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन