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श्री पावापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा - काव्य
पावापुर क्षेत्र अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर का निर्वाण धाम ह I अतः यह पवित्र एवं पूज्य तीर्थ स्थान है। इसका प्राचीन नाम अपाधापुर (पुण्यभूमि) था। इसके निकट में मल्ल राजतन्त्र का प्रमुख नगर हस्तिग्राम था। भगवान महावीर ने पावापुर में ही तीस वर्ष के बिहार के पश्चात् स्थिरयोग को धारण करते हुए समस्त दुष्कर्मों पर विजय प्राप्त कर अक्षय निर्वाण को प्राप्त किया था। यह स्थान जल मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। जो विशाल तालाब के मध्य में शोभायमान हैं। इसमें भगवान महावीर, गौतम (इन्द्रभूति) गणधर और द्वितीय कंवलज्ञानी सुधर्माचार्य के चरण चिह्न हैं। इसके अतिरिक्त अन्य भी दि. जैन मन्दिर हैं।'
क्षेत्रीय पूजा - काव्य
इस पावापुर पूजा- काव्य के निर्माता कवि दौलतराम जी वर्णी हैं। इस पूजा - काव्य में सम्पूर्ण 24 पद्य हैं जो पाँच प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। अलंकारपूर्वक क्षेत्र का महावीर के गुणों का और प्रकृति का वर्णन होने से हृदय में भक्ति रस उछलता है। उदाहरणार्थ कुछ पद्य -
जल समर्पण करने का पद्य -
शुचि सलिल शोतो कलिलरीता श्रमनचीती ले जिसो, भर - कनक झारी विगदहारी दे त्रिधारी जिततृपी | वर पद्मवन भर पद्मसरवर बहिर पावाग्राम ही शिवधाम सन्मति स्वामि पायो, जर्जी सो सुखदा मही ॥ महावीर का विहार और योगनिरोध से मुक्ति
पद्धरी छन्द
"भावे जीव देशना विविध देत आये वर पावानगर खेत कार्तिक अनि अन्तिम दिवस ईश, कर योगनिरोध अघाति पीस ।।
दीपावली पर्व का उदय
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तब ही तों सो दिन पूज्यमान, पूजत जिन गृहजन हर्षमान मैं पुन पुन तिस भुवि शीश धार, वन्दौं तिन गुणधर उर मझार ॥ तिनही का अब भी तीर्थ एह वरतत दायक अति शर्म गेह । अरु दुखमकाल अवसान ताहिं बरतेगो भवथितिहर सदाहि
1. जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, पृ. 40 284 जैन पूजा काव्य एक चिन्तन