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को सुनकर उन सब पुत्रों ने भी मुनिव्रत धारण कर लिया और तपस्या करते हुए अन्त में तीर्घराज सम्मेदशिखर से मुक्तिधाम को प्राप्त किया। प्रमाण भी है
ले इ.चे दर या, सतपा विविध बुधाः ।
शुक्ल ध्यानेन सम्मेदे, सम्प्रापन परमं पदम्।।' सम्मेदशिखर का मूल्यांकन-अनेक साहित्य मनीषियों ने विविध भाषाओं में सम्मेदशिखर का मूल्यांकन कर उससे सम्बद्ध पूजा-काव्यों का प्रणयन किया है। इनमें इस क्षेत्र के सिद्धक्षेत्रत्व का अनेकशः प्रमाणित किया है। जैन परम्परा में सम्मेदशिखर सर्वाधिक पूज्य एवं महनीय तीर्थक्षेत्र है।
कारंजा (महाराष्ट्र) के गंगादास कवि. मूलसंघ के भट्टारक श्री धर्मचन्द्र के शिष्य थे। आपने मराठी में 'पार्श्वनाथ भवान्तर', गुजराती में 'आदित्यवार व्रतकथा', 'त्रेपन क्रिया', संस्कृत में मेरुपूजा तथा क्षेत्रपाल पूजा-काव्यों का सृजन किया है। इनके अतिरिक्त आपने संस्कृत में सरस 'सम्मेदाचल पूजा' नामक काव्य की रचना कर तीर्घराज का महत्त्व बृद्धिंगत किया है। आपकी सत्ता का समय सत्रहवीं शती पाना जाता है।
विक्रम की ।वीं शती के संस्कृत कवि देवदत्त दीक्षित ने कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में जन्म लिश। अटेरनगर निवासी आपने भदौरिया नृप के शासन काल में सम्मान प्राप्त किया। इसी समय आपने शौरीपुर के भट्टारक (पट्टाधीश) जिनेन्द्र भूषण की प्रेरणा से संस्कृत पद्य में 'सम्मेदशिखर माहात्म्यं' एवं 'स्वर्णाचल माहात्म्य' इन दो ग्रन्धों की रचना कर तीर्थराज का अमूल्य मूल्यांकन किया। जिसका हिन्दी गद्यानुवाद आचार्य कुन्धुसागर जी मुनिराज ने किया है।
इस विशाल ग्रन्थ में विभिन्न छन्दों में निर्मित एक हजार सात सौ साठ (1710] पद्य इक्कीस अध्यायों में विभक्त हैं, उन अध्यायों में बीस पौराणिक कथा वस्तुओं का विवेचन है जिनमें श्री सम्मेदशिखर वन्दना का महत्त्व दर्शाया गया है। इस ग्रन्ध के प्रथम अध्याय के द्वितीय पद्य में ग्रन्धकर्ता ने ग्रन्थसृजन की प्रतिज्ञा प्रस्तुत की है
गुरुं गणशं वाणों च, ध्यात्या स्तुत्वा प्रणम्य च ।
सम्मेदशलमाहात्मय, प्रकटी क्रियते मया । भाव सौन्दर्य-जिन्होंने भव्य जीवों को उपदेश प्रदान कर गुरु के नाम को सार्थक किया है ऐस इन्द्रभुति गौतम आदि गणधरों को तथा जिनवाणी को हृदय से ध्यान कर, उनके गुणों की स्तुति कर तथा नमस्कार करके मैं (देवदत्त कवि) सम्मेदशिखर क्षेत्र की वन्दना के महत्त्व को कहता हूँ।
1. भारत के दि. जैप तीधं, द्वितीय भाग, पृ. 119
जैन पुजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: 275