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नागकमार महाव्याल व्याल आदिक मनिराई
भवे तिहि गिरसों मोक्ष थापि पूजों शिरनाई।। पूजा का उपदेश
कैलाश पहारा, जग उजिवारा, जिन शिव गाया, ध्यान धरो।
वसु द्रव्यन लायी, तिहि थल जायी, जिन गुणगायी पूज करो। इस मान्यता को स्वीकार कर लेने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि कैलाश या अष्टापद कहने पर हिमालय में भागीरथी, अलकनन्दा और गंगा के तटवर्ती बदरीनाध आदि से लेकर कैलाश पर्वत तक का समस्त पर्वत प्रदेश आ जाता हैं। हामें माता के किस, मोशीन, सरीनाथ, कंदारनाथ, गंगोत्री, जमुनोत्री और मुख्य कैलाश सम्मिलित हैं। यह पर्वत प्रदेश अष्टापद भी कहलाता था, क्योंकि इस प्रदेश में पर्वतों की जो शृंखला फैली हुई है, उसके बड़े-बड़े और मुख्य आर पद हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-(1) कैलाश, (2) गौरीशंकर, (3) द्रोणगिरि, (4) नन्दा, (5) नर, (6) नारायण, बदरीनाथ, (४) त्रिशूली । मानसरोवर कैलाश के ही निकर है।
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श्री गिरनार क्षेत्र पूजा काव्य
सौराष्ट्र देश की दक्षिणश्रेणी में 'रेवतगिारे' नाम का एक विशाल पर्वत है जो अत्यन्त उन्नत होने से 'ऊर्जयन्तगिरि' के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुआ। यह समुद्रतल से 3kih6 फुट की ऊँचाई को लिये हुए हैं। अत्यन्त प्राचीन काल से प्रसिद्ध इस विशाल पर्वत के गगनचम्वी शिखर शोभित हैं। प्राचीन काल में इस पर विशाल एवं सुन्दर मन्दिर तीर्घका के प्रतिबिम्व से रमणीय छ। यहाँ अनेक देव, विद्याधर और मानय, नेमिनाथ के दर्शन-पूजन करने के लिए आने थे। भगवान नेमिनाथ 22वें तीधकर य जी चवंशी श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। च ऋग्वेद में अरिष्ट नेमिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
नेमिनाथ ने अपने विवाह में होनेवाले पशुवध के षड्यन्त्र से द्रवित हो पशुओं को बन्धन से छुड़ाया और विसगता को धारण करते हुए, वस्त्राभूषणों का परित्याग कर रैवतक (गिरनार) पर्वत पर मुनिदीक्षा ग्रहण की और घोर तपस्या द्वारा दुष्कर्मों का क्षय कर कंवलज्ञान विश्वज्ञान प्राप्त किया और लोक-कल्याण के लिए विहार किया। अन्त में गिरनार पर्वत पर स्थिर वोगपूर्वक शुक्लध्यान से मुक्ति प्राप्त की।
इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार और शम्बुकुमार ने नेमिनाथ
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1. भारत के दि. जैन तीर्थ भाग-। सम्पा. बलमद जैन, प्र. -'भा. दि. जैन तीर्थक्षेत्र कोटी, हीरत्याग,
बम्बई. सन् 1974, पृ. 90
280 :: जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन