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अतिशय क्षेत्रों का वर्णन-जहाँ किसी मन्दिर, मूर्ति या क्षेत्र में कोई चमत्कार (अतिशय) देखा जाता है ये अतिशय क्षेत्र कहे जाते हैं, जैसे पहावीर जी, देवगढ़
आदि ।
सम्मेदशिखर तीर्थराज का इतिहास
जैन दर्शन में भक्तिमार्ग का विकास करने के लिए तीर्थक्षेत्र एक प्रमुख साधन माना गया है। इसलिए तीर्थक्षेत्रों का इतिहास और उनके अना का वर्णन परम आवश्यक है। श्री सम्मेदशिखर तीर्थ सम्पूर्ण तीर्थक्षेत्रों में सर्वप्रधान तीर्थक्षेत्र है। अतएव इसको तीर्थराज भी कहा जाता है। इसकी-मनसा-वाधा कर्मणा वन्दना करने से जन्म-जन्मान्तरों में संचित पाप कर्मों का नाश हो जाता है। इस विषय में निर्वाण क्षेत्र पूजा का एक पथ प्रसिद्ध है
बीसों सिद्ध भूमि जा ऊपर, शिखर सम्मेद महागिरि भूपर।
एक बार बन्देजो कोई, ताहि नरक पशु गति नहीं होई॥' सम्मेदशिखर के विषय में प्राकृतनिर्वाणकाण्ड का प्रमाण
बोसं तु जिणवरिंदा अमरासुरवन्दिता धुदकिलेसा।
सम्मेदे गिरितिहरे, णिव्वाणगया णमो तेसिं॥' सारांश-देव, मानब और तिर्यंचों से बन्दित, जन्म-मरण कष्ट को नष्ट करनेवाले श्रेष्ठ बीस तीर्थंकर श्री सम्मेदशिखर पर्वत से तप करते हुए मोक्ष को प्राप्त हुए। उनको सविनय प्रणाम हो। संस्कृत निर्वाण भक्ति में सम्मेदशिखर तीर्थराज का समर्थन
शेषास्तु ते जिनवरा जितमोहमल्लाः ज्ञानार्क भूरिकिरणरवभास्य लोकान् । स्थानं परं निरवधारित-सौख्यनिष्ट
सम्मेदपर्वततले समवापुरीशाः।' सारसौन्दर्य-मोहरूपी मल्ल का जोतनेवाले, जगन्यूज्य, अमित शक्तिसम्पन्न शेष उन बीस तीर्थकरों ने, झानतूर्य की प्रचुर किरणां के द्वारा जगत् के पानवों को
1. भारत के दि. जैन तीर्थ : सं. पं. बलभद्र जैन, प्र.-तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बई, 1974, प्राक्कथन,
पृ. 10-11 2. बृहत् महावीर कीर्तन, पृ. 8 ५. श्री विमलभक्ति संग्रह : सं. सु. सन्मांतसागर, प्र.. म्यादाद विमलज्ञानपीठ सोनागिर, दतिया,
पृ. 199, सन् 1985 +. श्री विपलभक्ति संग्रह. पृ. 1 निर्वाणभक्ति, पन 25
जैन पूजा-काव्यों में तीर्थभेन :: 273