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व्युष्टि संस्कार
___ व्युष्टि का अर्थ वर्ष-वृद्धि है। जिस दिन बालक का वर्ष पूर्ण हो उस दिन यह संस्कार करना चाहिए। इस संस्कार में कोई विशेष क्रिया नहीं है, केवल जन्मोत्सव मनाना है। यहाँ पर पूर्व के समान श्रीजिनेन्द्र देव की पूजा करें एवं हवन करें। नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर उस बालक पर पीले चावल बखेरें। मन्त्र-"उपनयन जन्मवर्षवर्धनभागी भव, वैवाहनिष्टवर्षवर्धनभागी भव, मुनीन्द्रवर्षवर्धनभागी भव, सुरेन्द्रवर्षवर्धनभागी भव, मन्दराभिषेकवर्षवर्धनभागी भव, यौवराज्यवर्षवर्धनभागी भव, महाराज्यवर्षवर्धनभागी भव, परमराज्यवर्षवर्धनभागी भव, आहन्यराज्यवर्षवर्धनभागी भव"।
___ अनन्तर यथाशक्ति चार प्रकार के दान दें। इष्टजन तथा बन्धु-वर्गों को भोजनादि द्वारा सन्तुष्ट करें। केशवाय अथवा चौलकर्म संस्कार
यह संस्कार 'चौलकर्म' कहा जाता है। यह संस्कार पहले, तीसरे पाँचवें अथवा सातवें वर्ष में करना उचित है। परन्तु यदि बालक की माता गर्भवती हो तो पुण्डन करना सर्वथा अनुचित है। माता के गर्भवती होने पर यादे मण्डन किया जाएगा तो गर्भ पर सका। उस मा २१ सोई घी के जाना मात्र है: यदि बालक के पाँच वर्ष पूर्ण हो गये हों तो फिर माता का गर्भ किसी प्रकार का दोष नहीं कर सकता अर्थात् सातवें वर्ष में यदि माता गर्भवती भी हो तथापि बालक का मुण्डन कर देना ही उचित है। बालक के सातवें वर्ष में माता के गर्भ से कोई हानि नहीं हो सकती।
लिपिसंख्यान संस्कार
लिपि संख्यान संस्कार अर्थात् बालक को अक्षसभ्यास कराना। शास्त्रारम्भ चलोपवीत से पीछे ही होता है। लिपिसंख्यान संस्कार पाँचवें अथवा सात वर्ष में करना चाहिए। ग्रन्थकारों का पत हैं :
___ "प्राप्ते तु पंचम वर्षे, विद्यारम्भं समाचरेत् ।' अर्थात्-पाँचवें वर्ष में विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिए।
ततोऽस्य पंचमे वर्षे, प्रथमाक्षरदर्शने। ज्ञेयः क्रियाविधि प्ना, लिपिसंख्यानसंग्रहः ॥
1. पाना संस्कार : सं. २ प्र.-जिनवाणो प्रचारक कार्यालय 16151 टीसन रोड फैलिकता,
जैन पूजा-काव्यों में संस्कार .: 245