________________
ऊपर कुछ हिन्दी एवं संस्कृत के पर्व पूजा- काव्यों की नामावली प्रस्तुत की गयी है। इनसे अतिरिक्त हिन्दी में अन्य पर्व पूजा - काव्य भी अपना प्रभाव दिखाते हैं, यथा :
अनन्तव्रत पर्व पूजा - काव्य
इसके रचयिता कवि का नाम अज्ञात है। इसमें प्रथम काव्य आडिल्ल छन्द में, नी काव्य गीता छन्द में और आठ काव्य पद्धरी छन्द में एवं अन्त में एक दोहा छन्द में काव्य निबद्ध है । कतिपय उदाहरण :
जय अनन्तनाथ करि अनन्तवीर्य, हरि घातकर्म धरि अनन्तवीर्य । उपजाय केवल ज्ञानभानु प्रभु लखै चराचर सब सुजान ॥
इस पद्य में स्वभावोक्ति तथा रूपक अलंकारों से शान्त रस की वृष्टि होती
है ।
ये चौदह जिन जगत में, मंगल करण प्रवीण पाप हरन बहु सुख करन, सेवक सुखमय कीन ॥
क्षमावाणी पर्व पूजा - काव्य
इस पूजा-काव्य के रचयिता मल्ल कवि हैं। इसमें विविध छन्दों में रचित कुल काव्य हैं। ये काव्य शान्तरस और अलंकारों से अलंकृत हैं। रत्नत्रय पर्व के पश्चात् आश्विन कृष्णा प्रतिपादा को क्षमावाणी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। उस समय यह पूजा की जाती है। इस दिन सभी सामाजिक बन्धु हार्दिक प्रसन्नतापूर्वक परस्पर मिलते हुए क्षमायाचना कर स्नेह की वृद्धि करते हैं । इस पूजा - काव्य के कुछ महत्त्वपूर्ण पद्य :
रत्नत्रय पूरण जब होई, क्षमा क्षमा करियो सब कोई । चैत्र माघ भादों त्रयवारा क्षमा क्षमा हम उर में धारा ॥ यह क्षमावाणी आरती, पढ़ें सुनै जो कोय । कई 'मल्ल' सरधा करो, मुक्ति श्रीफल
होय ॥
गुरुपूजा - काव्य (गुरुपूर्णिमा पर्व पर )
अठारहवीं शती के कविवर द्यानतराय ने गुरुपूजा काव्य का निर्माण किया है। इस काव्य में इक्कीस पद्म हैं। इन पद्यों में दोहा, गीतिका, बेसरी छन्दों का प्रयोग किया गया हैं। उदाहरणार्थ कतिपय पद्य :
1. बृहद् पहावीर कीर्तन, पृ. 244651
जैन पूजा - काव्यों में पर्व 250