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साधारण पर्व यथा-अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार आदि प्रतिमास में होते हैं।
जो महापुरुषों के निमित्त से होते हैं ये 'नैमित्तिक पर्व' कहे जाते हैं यथा--दीवाली, रक्षाबन्धन, विजयादशमी, महावीर जयन्ती, ऋषभनिर्वाण दिवस, अक्षय तृतीया, श्रुतपंचमी, गुरुपूर्णिमा, मोक्ष सप्तमी आदि।
जिनमें महापुरुषों की जीवन घटना का कोई निमित्त नहीं है परन्तु प्रलयकाल के पश्चात श्री ऋषभदेव आदि तीर्थकर महापरुषों के द्वारा मानव समाज के हित के लिए, अति प्राचीनकाल से संचालित किये जाते हैं अथवा कर्मभूमि के आदि में संचालित किये गये हैं वे 'नैसर्गिक पर्व' कहे जाते हैं, यथा-षोडश-कारण पर्व, दशलक्षण पर्व, रत्नत्रय पर्व, नन्दीश्वर पवं।
वैदिक संस्कृति में भी दशधर्म तथा गणेशव्रत को मान्यता नैसर्गिक रूप से परम्परागत है। भारत में यह परम्परा हैं कि इन पर्यों के शुभ अवसर पर सभा, प्रवचन, कवि-सम्मेलन आदि कार्यक्रमों के साथ महापुरुषों एवं परमात्मा की पूजा अर्चा भी समारोह के साथ की जाती है। जैन समाज में भी पर्व की रावन वेला में भगवत् अर्चा के साथ ज्ञान तथा व्रत की उपासना की जाती है। पर्व नैमित्तक जैन पूजा-काव्य
जैन कवियों एवं आचार्यों ने इन पर्वो की सफल मान्यता के लिए जैन पूजा-काव्यों की रचना की है। उदाहरणार्थ कुछ पर्व नमित्तक पूजा-काव्य निम्न प्रकार है-रविवार के दिन 'रविव्रत पूजा' की जाती है। नन्दीश्वर पर्व के दिनों में 'नन्दीश्वर पूजा' और 'सिद्धचक्रविधान' भी किया जाता है। सोलहकारण पर्व के दिनों में 'षोडशकारण पुजा', महावीर जयन्तो पर्व पर 'महावीर पूजा', श्रुतपंचमी पर्व पर 'सरस्वती पूजा', दशलक्षणमहा पर्व के दिवसों में श्री दशलक्षण पूजा, एवं दशलक्षणचिधान समारोह के साथ किया जाता है। इन पूजा-काव्यों का वर्णन अध्याय चतुर्थ में किया जा चुका है, अतः वहाँ पर नहीं किया है। रलत्रय पर्व के समय रत्नत्रय पूजा-काव्य का उपयोग होता है। इस पूजा का वर्णन अध्याय पंचम में किया गया है, अतः यहाँ पर नहीं किया गया है। ये सब हिन्दी भाषा में रचित पर्व पूजा-काव्य हैं।
संस्कृत भाषा में भी संस्कृत कवियों द्वारा पर्व पूजा-काव्यों की रचना को गयों है। जैसे -षोडशकरण पर्व पूजा, दशलक्षण पर्व पूजा, नन्दीश्वर पर्व पूजा इनका वर्णन नृतीय अध्याय में किया गया है और रनवन पर्व पूजा (संस्कृत) का वर्णन पंचम अध्याय में किया गया है। इनके अतिरिक्त अन्य भी अनक संस्कृत पर्व पूजा-काव्य हैं जो पर्व के अवसर पर उपयंग में आन हैं।
:: जैन पूजा काव्य : एक निग्न