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चहुंगति दुखसागरविष, तारणतरणजिहाज।
रतनत्रयनिधि नगनतन, धन्य महामुनिराज || इस पूजाकाव्य की जयमाला की रचना कवि हेमराज द्वारा हुई है, कुछ पद्य :
कनककामिनीविषयवश, दीखे सव संसार । त्यागी वैरागी महा, साध सुगण भण्डार || कही कहालौं भेद में, बुध थारी गुणभूर । हेमराज सेवक हृदय, भक्ति करो भरपूर ॥'
रक्षाबन्धन पर्व-पूजा-काव्य
श्रावणी पूर्णिमा पर्व या रक्षाबन्धन पर्व के शुभ अवसर पर यह पूजा (रक्षाबन्धन पूजा) की जाती है। इसके रचयिता कवि बायूलाल हैं।
इस पूजा-काव्य में पच्चीस पद्य, पाँच छन्दों में निबद्ध हैं और विविध अलंकारों से शान्तरल एवं करुण रस की वर्षा होती है। कतिपय पद्य :
श्री अकम्पन मुनि आदि सब सात सा कर विहार हरतनागपुर आये सात सौ ! तहाँ भयो उपसर्ग बड़ौं दुखदाय जी शान्तिभाव से सहन कियो मुनिराय जी || मुनि सब गुण धार, जग उपकार कर भवतारं सुखकारं । कर कर्म जु नाशा, आतमशाता, सुखपरकाशा, दातारं ॥
श्री विष्णुकुमार महामुनि-पूजा-काव्य
रक्षावन्धन पर्व के पावन प्रसंग पर श्री विष्णुकुमार पहामुनि पूजा भी की जाती है। इसके रचयिता श्री रघुपति कवि हैं। इस पूजा-काच्च में सम्पूर्ण सत्ताईस पद्य, पाँच प्रकार के छन्दों में रचित हैं। विभिन्न अलंकारों की छटा से शान्तरम एवं करुणरस को घटा छायी है। उदाहरणार्थ कतिपय भावपूर्ण पद्य :
गंगासम उज्ज्वल नीर. पूजों विष्णुकुमार सुधीर । दयानिधि होग, जय जगबन्धु दयानिधि होय ॥ सप्त सैकड़ा मुनिवरजान, रक्षाकरी विष्णभगवान। दयानिधि होय, जय जगवन्धु दयानिधि हाय ॥
1. वृटन महावीर कीन, पृ. 258-2501
26it :: जैन पूया काय : एक चिन्तन