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सुरथान माही वरत नाही, मनुज शुभ फल कुल लह,
तातें सुअवसर है भलो, अब करो पूजा धुनि कहे ।। श्रीनन्दीश्वर पर्व-पूजन-विधान काव्य
इस मध्यलोक में आठवाँ नन्दीश्वर द्वीप है। वह बहुत विशाल है। उसके चारों दिशाओं में तेरह-तेरह चैत्यालय के क्रम से सम्पूर्ण बावन विशाल चैत्यालय हैं। कार्तिक-फाल्गुन-आषाढ़ के अन्तिम आठ दिनों में सम्पूर्ण देव इन बावन चैत्यालयों की बन्दना करने जाते हैं। इसलिए इन आठ दिनों में नन्दीश्वर पर्व को मान्यता प्राचीन काल से ही ली है। गनुस द्वीप में जाने की शस्ति नहीं रखते। अतः अपने नगर के मन्दिर में ही उन 52 चैत्यालयों का पूजन एवं विधान करते हैं। उक्त विधान काव्य इसी नन्दीश्वर पर्व की पावन वेला में किया जाता है। इसके रचयिता कविवर 'टेकचन्द्र' नाम से प्रसिद्ध हैं। इस विधान काव्य के सम्पूर्ण 188 पद्य हैं जो नौ प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। अलंकार एवं गणों का स्थान-स्थान पर प्रयोग होने से शान्तिरस तथा भक्तिरस की गंगा प्रवाहित होती है। जिसके द्वारा पूजन भजन करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ कतिपय सरस पधों का दिग्दर्शन:
अष्टम द्वीप नन्दीश्वर बहु विस्तार है ताके चदिश बावन गिर मणिधार हैं। तिन सब पै जिनथान कह बावन सही सो यहाँ थापन थाप जजों पुण्य की महो || जे जिन मन्दिर समरत भाई, पाप कट पुण्य इन्ध कराई।
तौ दरशन की महिमा सारी, कई कौन फल की विधि भारी ॥ श्री ऋषभनाथ तीर्थंकर पूजा-काव्य-(ऋषभजयन्ती पूजा)
चैत्रकृष्णा नवमी-ऋषभजयन्ती पर्य पर, मायकृष्णा चतुर्दशी-ऋषभ निर्वाण पर्व पर और वैशाख शुक्ला तृतीया-अक्षयतृतीया पर्व के शुभ समय में भगवान् ऋषभदेव का पूजन, समारोह के साध, सामूहिक स्तर पर किया जाता है, व्रत, उपवास, जप, तप आदि श्रद्धापूर्वक किये जाते हैं। इस पूजा-काव्य के रचयिता अठारहवीं शती के प्रसिद्ध कविवर वृन्दावन हैं जिन्होंने अनेक पूजा-काव्यों की रचना की है। इस ऋषभ पूजा-काव्य में 29 पद्य, पाँच प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं जिनमें अलंकारों के प्रवाह से शान्तरस एवं भक्तिरस की शीतल तरंगें उछलती हैं। उदाहरणार्थ कतिपय मनोरम पद्य :
परम पूज्य बृषभेश स्वयंभूदेव जी पिता नाभि मरुदेवि करें सुर सेव जी ।
262 :: जैन पूजा काच : एक चिन्तन