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पर्वो का महत्त्व
ये पर्व मानव को श्रेष्ठ कर्तव्य के पालन के लिए प्रभावित एवं उत्साहित करते हैं। यदि पर्व का निमित्त न हो तो मानव के हृदय में विशेष उत्साह तथा नवीन जागृति नहीं हो सकती, नवीन सामाजिक कार्यक्रम भी सम्पन्न नहीं हो सकता है। विश्व के प्रायः सभी देशों में अपने-अपने धर्म एवं संस्कृति के अनुसार पर्वों की मान्यता है जिससे धार्मिक श्रद्धा दृढ होती है और धार्मिक सिद्धान्त अहिंसा, सत्य, एवं स्याद्वाद के अनुकूल बाह्य आचरण या संस्कार दृढ़ होते हैं।
अध्यात्म
पर्व एक वह अलार्मवेल (सावधान घण्टी ) है जो मोह नींद में सुप्त मानव को धर्म एवं संस्कृति के मान से जनजागरण के लिए प्रेरणा देता है। पर्व एक वह सूचीयन्त्र (इंजेक्शन) है जो पाप एवं व्यसन से रुग्ण मानव की आत्मा को श्रद्धा ज्ञान आचरण के प्रभाव से स्वस्थ एवं शक्तिशाली बना देता है। पर्व एक वह नेता है जो समाज को जागृत करने के लिए नैतिक क्रान्ति को उत्पन्न करता है। जो समाज को स्वस्थ तथा संगठित बना देता है जिससे विभिन्न कार्य सम्पन्न होते हैं । सभा के कार्यक्रम में व्याख्यान - कविता-वाद-विवाद आदि के द्वारा धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा समाज को प्राप्त होती है। सामूहिक भगवत्पूजा का संगीत के साथ कार्यक्रम होने से सामाजिक वातावरण शान्त, एकविचार और समान रीति-रिवाज का विकास होता है ।
राष्ट्रीय जीवन के तत्त्व और सत्य-अहिंसा-पंचशील आदि सिद्धान्तों का विकास पर्व के माध्यम से होता है। पर्व की मान्यता से शासन में शान्त वातावरण, समस्याओं का हल और प्रजा तथा शासकों के मध्य में भातृ स्नेह का भाव जागृत होता है । राष्ट्र के सुरक्षा की भावना उदित होती है। पर्व की मान्यता एक वैज्ञानिक तत्त्व है। वर्तमान युग में पर्व की साधना में विज्ञान एक भौतिक वल प्रदान करता है। पर्व के लक्ष्य के विकास में विज्ञान सहयोग देता है।
पर्व के भेद
पर्व दो प्रकार के होते हैं - (1) राष्ट्रीय पर्व, (2) धार्मिक पर्व ।
(1) राष्ट्रीय पर्व - राष्ट्रीय पर्व राष्ट्रीय सिद्धान्तों को और धार्मिक पर्व धार्मिक सिद्धान्तों और नैतिक तत्वों को विकसित करते हैं। राष्ट्रीय पर्व जैसे- स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, गाँधी जयन्ती, शिक्षक दिवस, बाल दिवस, सुभाष जयन्ती, इन्दिरा दि. इत्यादि दिवस ।
(2) धार्मिक पर्व - मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं - (1) साधारण पर्व, (2) नैमित्तिक पर्व, (3) नैसर्गिक
जैन पूजा - काव्यों में पर्व : 257