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सज्जन के संयोग से अथवा श्रेष्ठ संस्करण के संयोग से साधारण मानव भी महानू हो जाता है।
इस पूजा - काव्यों का संस्कारों पर बहुत प्रभाव प्रकाशित होता है। कोई भी संस्कार पूजा - काव्य एवं मन्त्र की शक्ति के बिना अपना प्रयोजन पुष्ट नहीं कर सकता। अन्त में संस्कारों का रेखाचित्र है ।
इसी प्रकार पूजा - काव्यों का अशुभ ग्रहों पर भी प्रचुर प्रभाव अभिव्यक्त होता है । प्रत्येक मानव का ग्रहों से जीवनान्त सम्बन्ध है। ग्रह शुभ तथा अशुभ दो प्रकार के होते हैं। जब शुभ ग्रह का उतरा होता है तब सुख का अनुभव होता है। जब अशुभ ग्रह का उदय होता है तब दुःख का अनुभव होता है। यद्यपि जीवन में सुख और दुःख पूर्वोपार्जित कर्म के उदय से होते हैं। सुख और दुःख में कर्म निमित्त होते हैं, ग्रह नहीं । जब ग्रह दुःख-सुख के दाता नहीं हैं तो क्रिया शून्य होने से ग्रहों के अभाव का प्रश्न उपस्थित हो जाता है। ऐसी दशा में इसका उत्तर यही है कि जिस समय कर्मों के निमित्त से प्राणी को सुख और दुःख होते हैं उस समय ग्रहों की दशा सुख-दुःख को सूचित कर देती है। यह ग्रहों का कार्य है। इसलिए ग्रहों का अभाव नहीं हो सकता । ग्रहों की शान्ति के लिए इस कारण ही चौबीस तीर्थकरों का पूजन, जप और हवन किया जाता है। अन्त में ग्रहों के विवरण का रेखाचित्र अंकित किया गया है । एवं नवग्रहशान्तिस्तोत्र एवं ग्रहशान्ति मन्त्र का उल्लेख है । पश्चात् वैदिकधर्म में कथित संस्कारों का उल्लेख है I
तत्पश्चात् जैनदर्शन के अन्तर्गत आचार्य जिनसेन के द्वारा आदिपुराण में प्रतिपादित प्रायः 80 संस्कारों का ( गर्भान्वय क्रिया- 53, दीक्षान्वय क्रिया- 20, क्रियान्वव क्रिया - 7 ) दिग्दर्शन कराया गया है। जिनका संक्षिप्त वर्णन इस अध्याय में प्रस्तुत है
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जैन पूजा काचों में संस्कार : 255