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ग्रहशान्ति मन्त्र
ओं ह्रीं ग्रहाश्चन्द्रसूर्यांगारकबुधबृहस्पति शुक्र शनैश्चरराहुकेतुसहिताः खेटा जिनपतिपुरतो अवतिष्ठन्तु मम धनधान्य जयविजय सुखसौभाग्यधृतिकीर्ति कान्ति शान्ति तुष्टिपुष्टिवृद्धिलक्ष्मीधर्मार्थकामदाः स्युः स्वाहा |
जैन दर्शन में संस्कार
जैनदर्शन के अन्तर्गत आदिपुराण के रचयिता आचार्य जिनसेन संस्कृति समन्वयवादी थे। उनके समय में सामाजिक विशेषाधिकार वर्णाश्रम और संस्कार संस्था पर ही अवलम्बित था। उस युग में संस्कारहीन व्यक्ति शूद्र समझा जाता था तथा जाति और वर्ण भी सामाजिक सम्मान के हेतु थे। अतएव दूरदर्शी समाज शास्त्रवेत्ता जिनसेन आचार्य ने जैन धर्मानुयायियों को सामाजिक सम्मान और उचित स्थान प्रदान करने के लिए वर्णाश्रम व्यवस्था तथा संस्कार व्यवस्था का योग्य प्रतिपादन किया है। जिनसेन की वह संस्कार संस्था मुख्यतः तीन भागों में विभक्त
है ।
(क) गर्भान्वय क्रिया संस्था |
(ख) दीक्षान्वय क्रिया संस्था |
(ग) क्रियान्वय क्रिया संस्था ।
(क) गर्भान्वय क्रिया - संस्था में श्रावक या गृहस्थ नागरिक की 53 क्रियाओं का वर्णन है-वह इस प्रकार हैं :
(1) आधान क्रिया (संस्कार), (2) प्रीति क्रिया, (3) सुप्रीति (1) धृति, (5) मोद, (6) प्रियोद्भव जातकर्म, ( 7 ) नामकर्म, नामकरण ( 8 ) वहिर्यान, ( 9 ) निषद्या, (10) अन्नप्राशन ( 11 ) व्युष्टि ( वर्षगाँठ ), ( 12 ) केशवाय, (13) लिपिसंख्यान, ( 14 ) उपनीति (यज्ञोपवीत ), ( 15 ) व्रतावरण, ( 16 ) विवाह, (17) वर्णलाभ ( 18 ) कुलचर्या, ( 19 ) गृहीशिता, ( 20 ) प्रशान्ति, ( 21 ) गृहत्याग, {22} दीक्षाग्रहण, (23) जिनरूपता ( 24 ) मौनाध्ययन, ( 25 ) तोर्यकृद्भावना, (26) गणोपग्रहण, ( 27 ) स्वगुरुस्थानावाप्ति, ( 28 ) निसंगत्वात्मभावना, ( 29 ) योगनिर्वाणसम्प्राप्ति, ( 30 ) योगनिर्वाणसाधन, ( 31 ) इन्द्रीपपाद, ( 32 ) इन्द्राभिषेक, ( 33 ) इन्द्र विधिदान, ( 34 ) सुखोदय ( 35 ) इन्द्रत्याग, ( 36 ) अवतार, (87) हिरण्योत्कृष्टजन्मग्रहण, ( 38 ) मन्दराभिषेक, ( 39 ) गुरुपूजन, ( 40 ) यौवराज्यक्रिया, ( 11 ) स्वराज्यप्राप्ति, ( 42 ) दिशांजय, (49) चक्राभिषेक, (41) साम्राज्य, (45) निष्कान्त ( 46 ) योगसम्मह, ( 47 ) आर्हन्त्य क्रिया, ( 48 ) विहारक्रिया, (49) योगत्याग, ( 50 ) अग्रनिर्वृत्ति, तीन अन्य क्रिया (संस्कार) इस प्रकार गर्भ से लेकर निर्वाण पर्यन्त 53 क्रियाओं (संस्कारों) का कथन किया गया है I
जैन पूजा - काव्यों में संस्कार 253