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है। अर्थात् इन्हीं से ज्योतिष विद्या का उदय हुआ है। उनमें ग्रह नौ प्रकार के होते हैं--(1) चन्द्र, {2} सूर्य, (3) मंगल, (4) बुध, (5) बृहस्पति, (6) शुक्र, (7) शनैश्चर, (8) राहू, (9) केतु।
ज्योतिष ग्रन्थों में इन ग्रहों की दशा का सूक्ष्म वर्णन किया गया है।
जैन दर्शन में इन अशुभ ग्रहों की दशा को शान्त करने के लिए नवग्रह शान्ति पूजा-विधान काव्य की रचना श्री गम्बरमास जी ने सम्माप्ति की है। इसमें नवग्रहों का एक समुच्चय पूजा तथा नवग्रहों की पृथक्-पृथक् नवपूजा, इस प्रकार दश पूजाएँ हैं। इस काव्य में सम्पूर्ण 211 पद्य हैं, इनमें 17 प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है।
इन पद्यों में यथासम्भव रस एवं अलंकारों की छटा से भक्तिरस प्रवाहेत होता है। इन अशुभ ग्रहों की शान्ति के लिए चौबीस तीर्थंकरों का पूजन, जप तथा हवन का अनुष्ठान दर्शाया गया है। इस पूजाविधानकाव्य का मंगलाचरण संस्कृत में इस प्रकार है :
अनुष्टुप् छन्द प्रणम्याद्यन्ततीथेंश, धर्मतीर्थप्रवर्तकम् । भव्यविघ्नोपशान्त्यर्थ, ग्रहार्चा वर्ण्यते मना ॥ मार्तण्डेन्दु कुजसौम्य-सूरसूर्यकृतान्तकाः | राहुश्च कंतुसंयुक्तो, ग्रहाः शान्तिकरा नव ||
दोहा काल टॉप परभावसौं, विकलप छूट नाहिं। जिन पूजा में ग्रहन को-पूजा मिथ्या नाहि || ज्ञान प्रश्नव्याकर्ण में, प्रश्न अंग हैं आठ ।
भद्रबाहुमख जनित जो-सुनत कियो मुख पाठ ।' पूजा-काव्य द्वारा इन नहीं की शान्ति का विवरण निम्नानुसार है :
क. ग्रहनाम शान्ति के लिए तीर्थकर पूजा मन्त्रजाप संख्या 1. सूर्यग्रह पद्मप्रभतीर्थंकर पूजा
7000 जाप्य 2. चन्द्रग्रह चन्द्रप्रभतीर्थंकर पूजा 11000 जाप्य 3. मंगलग्रह वासुपूज्यतीर्थंकर पूजा 10000 जाप्य
यज्ञ शान्तियज्ञ
1. उमास्वानी वर्गात जनार्थपूत्र : २६. पं. पन्नालाल साहित्याचा. प्र. जैन पुस्तकालय, गांधी चौक,
सूरत, पृ. 16. 1481 . 1, सूत्र 12, 13, 14 |
जैन पूजा-काव्यों में संस्कार :: 251