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भी द्रव्यपूजा, भावपूजा के भेद से दो-दो भेद होते हैं। अन्य प्रकार से भी पूजा के चार भेद होते हैं - ( 1 ) द्रव्यपूजा, (2) क्षेत्रपूजा (3) कालपूजा (5) भावपूजा । (1) द्रव्यपूजा - अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, चैत्य (प्रतिमा), चैत्यालय (मन्दिर), आगम ( शब्दात्मक शास्त्र)- इन आठ देवों का मन-वचन-काय से आष्ट द्रव्यों से पूजन करना द्रव्यपूजा कही जाती है।
(2) क्षेत्रपूजा - सम्मेदशिखर, गिरनार, चम्पापुर, पावापुर आदि तीर्थक्षेत्रों का पूजन करना अथवा अर्हन्त सिद्ध आदि देवों के द्वारा व्याप्त आकाश-प्रदेशों (आकाश क्षेत्र) के पूजन करने को क्षेत्रपूजा कहा जाता है। कल्याणक क्षेत्रों की पूजा भी क्षेत्र पूजा है।
( 3 ) कालपूजा - जिस काल में तीर्थंकरों के पंच कल्याणक होते हैं, उस काल में उन उन तीर्थंकरों का पूजन करना कालपूजा है। जैसे दीक्षा कल्याणक दिवस, दीपावली अर्थात् महावीर निर्वाण दिवस महावीर जयन्ती, ऋषभ निर्वाण दिवस, अक्षय तृतीया इत्यादि । अथवा जिन महिमा से सम्बन्धित काल में जिनेन्द्र देव का पूजन करना कालपूजा कही जाती है। जैसे नन्दीश्वर पर्व पूजन, अक्षय तृतीया पर्व पूजा, वीर शासन जयन्ती पर्व पूजन, रक्षाबन्धन पर्व पूजा, दशलक्षण पर्व पूजा इत्यादि ।
है ( 4 ) भावपूजा -- अर्हन्त आदि नवदेवों के गुणों का अर्चन करना भावपूजा अथवा पूजा सम्बन्धी शास्त्र का ज्ञाला कोई मानव जब वर्तमान में पूजा सम्बन्धी उपयोग से विशिष्ट होता है तब वह भाव पूजा कही जाती हैं।
शिक्षित जगत् में किसी दृष्टि विशेष से प्रचलित लौकिक व्यवहार की अपेक्षा पूजा के छह प्रकार भी कहे गये हैं- ( 1 ) नामपूजा (2) स्थापनापूजा, ( 3 ) द्रव्यपूजा, (4) क्षेत्रपूजा (5) कालपूजा, ( 6 ) भावपूजा |
(1) अहन्त, सिद्ध आदि देवों का नाम उच्चारण करके विशुद्ध प्रदेश में जी पुष्प्रक्षेपण किये जाते हैं वह नामपूजा कही जाती है। ( 2 ) धातु-काष्ठ-पाषाण आदि की प्रतिमा में अर्हन्त आदि के गुणों का आरोपण करके उसकी पूजा करना स्थापना पूजा कही जाती है। इसके दो भेद हैं, ( 1 ) साकार स्थापना पूजा (2) निराकार स्थापना पूजा । 1. मूलवस्तु के आकार वाली वस्तु में मूलवस्तु के गुणों का आरोपण करना साकार स्थापना पूजा या सद्भाव स्थापना पूजा कही जाती है। जैसे भगवान महावीर की प्रतिमा में भगवान महावीर की स्थापना कर पूजा करना। 2. मूलवस्तु से भिन्न आकार वाली वस्तु अक्षत, पुष्प, गोट आदि में भिन्न आकार वाली वस्तु की कल्पना कर उसका नाम लेते हुए आदर करना निराकार स्थापना पूजा कही जाती हैं। जैसे पुष्प में भगवान महावीर की स्थापना करना अथवा शतरंज की गोट आदि में बादशाह, बंगम आदि की कल्पना करना। काग़ज़ की बनी पुस्तक आदि में यदि धर्म का वर्णन किया गया हो तो उसमें जिनवाणी, श्रुतदेवी सरस्वती माता को
एक चिन्तन
जैन पूजा काव्य