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मनोहर छन्दों में तंतीस पद्यों की रचना भावपूर्ण करके आत्मा को भगवान् की भक्ति में तन्मय किया है। आपका समय ईशा की अठारहवीं शती माना जाता है। उदाहरणार्थ स्थापना का प्रथम पद्य -
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श्रीमती हरै भवपीर, भरे सुखशीर अनाकुल ताई, केहरिअंक अरीकरदंक, नये हरिपंकतिमालि सुआई । मैं तुमको इत थापतु हों प्रभु भक्तिसमेत हिये हरवाई, हे करुणाधनधारक देव, इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई ॥ '
इस पद्य में मत्तगयन्द छन्द, रूपक तथा अनुप्रास अलंकारों के साथ, शान्तरस की छटा से सहृदयों को भक्ति में तन्मयकर देता है।
जल अपंग करने का पथ
क्षीरोदधिसम शुचि नोर, कंचनभृंग भरों, प्रभुवेग हरो भवपीर, बातें धार करों । श्री वीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो, जय वर्धमान गुणधीर, सन्मति दायक हो ।
इस पद्य में अष्टपदी अथवा अवतार छन्द शान्तरस के योग्य प्रयुक्त किया गया है। इसमें उपमा, अनुप्रास और स्वभावोक्ति अलंकार शान्तरस के माधुर्य को व्यक्त कर रहे हैं।
जयमाला का प्रथम पद्म
गनधर, अशनिवर चक्रधर, हलधर गदाधर वरदा अरु चापधर विद्यासुधर, तिरसूलधर संयहिं सदा । दुखहरन आनन्दमरन तारण तरन चरण रसाल हैं कुमाल गुनमनिपाल उन्नतभाल की जयमान हैं ।
हरिगीता छन्द, वनक, अनुप्रास, उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति और स्वभावांक्ति अलंकारों की छड़ा से यह पद्म शान्तरस का सरांबर है जो कि आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करता है।
जयमाला का द्वितीय छन्द (पद्य)
जयत्रिशलानन्दन, हरिकृतवन्दन, जगदानन्दन, चन्दवरं । भवतापनिकन्दन, तनमनवन्दन रहितसपन्दन नयनवरं ।।
इस पद्य में घता छन्द की मधुर ध्वनि के साथ यमक, अनुप्रास, रूपक और स्वभावोक्ति अलंकार भक्त के मन-मन्दिर को अलंकृत कर शान्ति प्रदान कर रहे हैं।
॥ जिनेन्द्रमणिमाला पृ. 921825
208 जैन पूजा- काव्य एक चिन्तन
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