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काटत जगफन्दा, भविजनवृन्दा, करत अनन्दा चरणन में जो पूजे, ध्यायें, मंगल गावै, फेर न आवै भववन में ॥
इस पद्य में रूपक और स्वभावोक्ति अलंकार शान्तरस को उछला रहे हैं।
श्री अष्टम नन्दीश्वर द्वीप के जिनालयों का पूजन
ईसा की अठारहवीं शती में कविवर द्यानतराव जी ने श्रीनन्दीश्वर पूजा का निर्माण किया है। इसमें विविध छन्दों में बीस पद्य निबद्ध हैं। उदाहरणार्थजल अर्पण करने का प्रथम पद्य इस प्रकार है
कंचनमणिमय भृंगार, तीरथ नीर भरा तिहुँ धारदयीं निरवार, जन्मन मरण जरा । नन्दीश्वर श्रीजिनधाम, बावन पूज करें वसु दिन प्रतिमा अभिराम आनन्दभाव धरी ॥
इस पद्य में अवतार छन्द के पढ़ने से ही आत्मा में शान्ति का उदय होता है । इस पद्य के अतिशयोक्ति एवं स्वभावांक्ति अलंकार आभूषण हैं। इसी पूजा को जयमाला का नवम पद्म इस प्रकार है
कोटि शशि भानु दुति तेज छिप जाता है। महावैराग्य परिणाम ठहरान हे I वचन नहिं कहें लखि होत सम्यकूधरं भवन बावन प्रतिमा नमीं सुखकरं ॥ "
इस पद्य में अतिशयोक्ति और विभावना अलंकारों के द्वारा शान्तरस की सरिता प्रवाहित होती है। इस काव्य में हीरक छन्द की मधुर स्वरलहरी लहरा रही है ।
सोलह कारण पूजन ( सोलह भावना पूजा)
इस पूजन में कविवर द्यानतराय जी ने उन पवित्र सोलह कारणों या भावनाओं का वर्णन किया है जिनके अनुचिन्तन करने से भव्य आत्मा तीर्थकर पद को प्राप्त करता है, जो धर्मतीर्थ का महान् प्रवर्तन करते हैं। इस पूजन में विविध छन्दों में रचित कुल 38 पद्म हैं जो विविध अलंकारों से अलंकृत हैं। उदाहरणार्थ स्थापना का प्रथम पद्य इस प्रकार है
1. जिनेन्द्र मणिमाला, पृ. 161-165 2. तीच, पृ. 16-171
2000 जैन पूजा-काव्य : एक चित्तन