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सम्यग्ज्ञान तीसरा नेत्र है
सम्यक्ज्ञान रतन मन भाया, आगम तीजा नैन बताया। अक्षर शुद्ध अर्थ पहिचानी, अक्षर अरथ उभय सँग जाना ॥' सम्यक्चारित्र का महत्त्व
विषयरोग औषध महा, दवकषाय जलधार । तीर्थंकर जाको धेरै सम्यक् धारित सार ॥ *"
सम्यक् चारित्र के भेद और उसके अंग
आप आप थिर नियत नय, तप संयम व्यवहार । स्व-परदया दोनों लिये, तेरह विध दुखहार ।। * सम्यक् चारित्र का उपदेश चौपाई मिश्रित गीता छन्द चारित्र स्तन भाल पांच
पालो । पंचसमिति त्रय गुपति गहीजे, नरभव सफल करहु तन छीजे || ' रत्नत्रय से मुक्ति
सम्यक् दरशन ज्ञान व्रत, इन बिन मुकति न होय । अन्य पंगु अरु आलसी, जुदे जलै दवलाय ।। "
काव्यसौन्दर्य - सम्यग्दर्शन ( दृढ़ श्रद्धान), सम्यक्ज्ञान (श्रद्धान के साथ सत्यार्थ वस्तु का विज्ञान), सम्यक् चारित्र ( श्रद्धा ज्ञान के साथ निर्दोष आचरण) इन तीनों की एक साथ पूर्णता होने से मुक्ति की प्राप्ति होती है, यदि ये गुण पृथक-पृथक पालन किये जायें तो मुक्ति प्राप्त नहीं होती ।
किसी जंगल में तीन पुरुष रहते थे। एक अन्धा, एक लैंगड़ा और एक आलसी । एक समय वन में अग्नि धधक उठा। तीन ओर से दावानल लग चुका था, केवल एक दिशा खाली रह गयी थी। चक्षुहीन होने से अन्धा पुरुष अपने प्राण बचाने के लिए एवं पैरहीन होने से लूँगड़ा पुरुष अपने प्राण बचाने के लिए नहीं भाग सके । आलसी पुरुष नींद लग जाने से नहीं भाग सका। प्राण बचाने का कोई उपाय न देखकर अन्धा और लैंगड़ा दोनों रोने लगे। इसी समय एक बुद्धिमान मानव वहाँ से
1. ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृ. 330
2. तथैय, पृ. 330
9. a, 7. 932
4. तथैव पृ. 332 5. तथैव पृ. १३५
जैन पूजा कायों में रत्न-बय : 233