________________
सगुण (सकल) और निर्गुण (निष्कल) की भक्ति के रूप में ही रचे गये हैं। उपसंहार
देश तथा काल के परिवर्तन के अनुकूल भाषाओं में भी विकास और परिवर्तन होता रहता है। प्राचीन काल में संस्कृत और प्राकृतभाषा में जैनदर्शन के साहित्य की रचना हुई। तदनन्तर अनेक प्रान्तीय भाषाओं में और देशान्तर भाषाओं में उस साहित्य का भाषान्तर हुआ तथा उसका प्रचार एवं प्रसार हुआ। भारतीय हिन्दी साहिम हिन्दी जैन पूग का भी गाय
त करता हैं। उसके सृजन के साथ जैन पूजा-काव्य का भी विकास हुआ है। पूर्वकाल में संस्कृत पूजा तथा प्राकृत पूजा के माध्यम से गृहस्थ नागरिक परमात्मा की उपासना करते थे। समय का परिवर्तन होने पर संस्कृत से हिन्दी भाषा का उदय हुआ। शनैः शनैः उसका विकास हुआ। वर्तमान में हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा पद पर आसीन है। इसलिए आवश्यकता के अनुकूल हिन्दी भाषा में भी जैन पूजा-काव्य की रचना का उदय हुआ और उसका विकास हुआ।
भारतीय हिन्दी साहित्य के विकास में जैन हिन्दी पूजा-काव्य ने भी बहुत सहयोग प्रदान किया है, वह भी गद्य की अपेक्षा पद्य में विशिष्ट स्थान रखता है। इस निबन्ध में पद्य पूजा साहित्य का ही उल्लेख किया गया है जो वर्तमान में प्रचलित है। इस अध्याय में हिन्दी जैन पूजा-काव्य का छन्द-रस और अलंकार की दृष्टि से महत्त्व दर्शाया गया है। कारण कि गद्य की अपेक्षा पद्य सबको प्रिय होते हैं तथा शीघ्र स्मृति में आ जाते हैं। उन पधों की लोकप्रियता या सौन्दर्य अलंकारों से होता है। उसका अध्ययन एवं मनन करने से आत्मा में शान्तरस या भक्ति रस रूप आनन्द का आविभाव होता है।
इस अध्याय में 26 हिन्दी पूजा-काव्यों के छन्द, रस एवं अलंकारों से अलंकृत मनोहर पद्यों के संक्षिप्त उद्धरण दिये गये हैं जिनके पढ़ने से आनन्द का अनुभव होता है, जैन पूजा-काव्यों की महत्ता एवं सार्थकता सिद्ध होती है। सम्पूर्ण पूजा साहित्य के छन्द, रस तथा अलंकारों सहित पद्यों का उद्धरण विस्तार के भय से लिखना सम्भव नहीं है इसलिए जैन पूजा-काव्यों की सूची अन्त में प्रदर्शित की जाती है। इस सूची में प्रतिष्ठाग्रन्थ, पूजा विधान, पूजाग्रन्थ, समुच्चयपूजामन्ध और विविध पूजनों का संग्रह किया गया हैं। इसकी संख्या सम्भवतः 201 होती है। यद्यपि इससे अधिक संख्या भी हिन्दी पूजा-काव्य की हो सकती है परन्तु पूजा विषयक साहित्य पूर्ण उपलब्ध नहीं हो सकता है अतः संक्षप से इस संख्या का उल्लेख किया गया है।
1. डॉ. प्रेमसागर जैन : हिन्दी जैन मक्ति काव्य और कपि, प्र.-भारतीय ज्ञानपीट, दंहला, 1461.
प्र.सं., पृ. 2
हिन्दी जैन पूजा-काव्यों में छन्द, रस, अलंकार :: 22.3