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इस काव्य में रूपकालंकार के द्वारा भक्तिरूपी अमृत की धारा प्रवाहित होती
त्रिलोकसार पूजा भाषा काव्य
इस काव्य का सृजन कविवर पं. बुधमहाचन्द्र, द्वितीयनाम कविवर पं. महाचन्द्र ने किया है। आप खण्डेलवाल समाज के भूषण थे। जन्मस्थान- सीकर (जयपुर) था किन्तु प्रतापगढ़ में वि.सं. 1915 कार्तिक कृष्ण अष्टमी शुक्रवार को उक्त काव्य की रचना समाप्त की । इस विधान महाकाव्य में 7 महापूजा संस्कृत तथा प्राकृत भाषा में गुम्फित हैं। इनका हिन्दी भाषान्तर आपने किया है। इससे सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा एवं प्राकृत भाषा के विद्वान् कवि थे। इसमें 80 प्रकार के छन्दों द्वारा पद्य निबद्ध हैं। इसमें तीन लोक के अकृत्रिम वैत्यालयों का 480 पृष्ठों में संक्षेप से पूजन किया गया है ।
सिद्धलोकपूजा की जयमाला के कुछ आद्यकाव्य
तीनलोक चूडामणी, अष्टकर्मरज नाँहि I नमो सांच नमन मिळे सिद्धदेव का कह
श्री ऋषिमण्डल मन्त्र कल्प (ऋषिमण्डल विधान )
श्री ऋषिपण्डलमन्त्र कल्प नामक विधानकाव्य की रचना श्री विद्याभूषण आचार्य (श्री गुष्णभद्राचार्य मुनीन्द्र ने संस्कृत भाषा में सम्पन्न को है। इस पूजा-काव्य में 183 संस्कृत मधों द्वारा चोबीस तीर्थंकर तथा ऋषियों की तपस्या के प्रभाव से सिद्ध ऋषियों का मन्त्र बन्त्र के साथ पूजन किया गया है। इस संस्कृत पूजा- काव्य का हिन्दी में अनुवाद, आगरा उ.प्र. निवासी संस्कृतज्ञ विद्वान् श्री लाल काव्यतीर्थ सिद्धान्तशास्त्री ने भक्तिभाव के साथ किया है। इस पूजा काव्य की समाप्ति की शुभतिथि फाल्गुन कृष्ण द्वितीया, गुरुवार, वी.नि.नं. 2484 स्मरण के योग्य है । अंगरक्षक तकलीकरण मन्त्र की विधि
हृदयकमल में 'अहं' पद का स्थापन जो है करना कर्मणकाल जलावन कारण अग्निज्वाला बनना । निर्मल है वह निर्मल करता अरहत्षद का दाना बारंबार नमूं मैं उनको पाऊँ अक्षय साता ।।
1. संग्रहकर्ता एवं प्रकाश मूलचन्द किशनदास कापड़िया श्री दि. जैन पुस्तकालय, गांधी चौक, सूरत। प्रथम संस्करण, श्री. श2183
218 :: जैन पूजा काव्य एक चिन्तन