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इनके सेवक देव चतुर निकाय हैं देवि जयादिक भक्ति सहित शिरनाय हैं || '
आडल्ल छन्द में निर्मित ये पद्य भक्ति रस को प्रवाहित कर रहे हैं। यहाँ 'ह्रीं' मन्त्र की पूजा के लिए यन्त्र की स्थापना का विधान है।
यन्त्र के प्रथम वलय (गोलाकार विभाग) में चौबीस तीर्थंकर द्वितीय वलय में शब्द ब्राह्म ( व्यंजन स्वर वर्ण), तृतीय वलय में पंचपरमेष्टी देव, चतुर्थ वलय में ऋद्धिधारी मुनीश्वर, पंचम वलय में श्री आदि चौबीस देवियाँ तथा चार प्रकार के देवों की स्थापना की गयी है। इसलिए ही यह मन्त्र परमपूज्य महामन्त्र हैं ।
जल अर्पण करने का काव्य
गंगा आर्दिक शुभ नदियों के नीर सुगन्धित लाऊँ भरि भरि झारी धार देयकर अगनि कषाय बुझाऊँ । ह्रीं बीजाक्षर पूजन तप से सब ही विघ्न विलाये ऐसी श्रद्धा धर कर मन में नित प्रति पूज रचाये ॥
मन्त्र - ओं ह्रीं श्रीमदहंदादिज्ञापक ह्रीं बीजाक्षराय जलं निर्वपामि स्वाहा || 2 शब्द ब्रह्म की पूजा में प्रथम शब्द ब्रह्म की स्थापना
शब्द ब्रह्म जाने बिना, परम ब्रह्म नहि होय । लौकिक आगम जपना, इसके बिना नशाय निश्चयनय व्यवहार के दोनों ब्रह्म प्रतीक । इससे ही आराध्य हैं, दोनों सत्य
सुनीक ॥ *
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यहाँ पर स्वर तथा व्यंजन आदि को शब्द ब्रह्म कहा गया है। इससे परमब्रह्म की प्राप्ति होती है।
जयमाला के अन्तिम पद्य और शब्दब्रह्म की उपासना का फल
शब्द ब्रह्म की सेब से इस ही से पूजा रची, आलम्बन नाना कहे, उनमें ध्यान पदस्थ यह
1. पूर्व लिखित पुस्तक. पृ. क्रमशः 17 २. पूर्वोक्त पुस्तक पृ
3. पूर्वोक्त पुस्तक पू
1. पूर्वोक्त पुस्तक. पृ. 17
2211: जेन पूजा काव्य एक चिन्तन
शिव का पावे राज भक्तिभाव उर साज ॥ मोक्ष प्राप्ति के हेत । ध्यावो भक्ति समेत ॥ *