________________
विविध छन्दों में निबद्ध बीस काव्यों के द्वारा किया गया है। ये भारत में निर्वाण तीर्थ क्षत्रों के नाम से प्रसिद्ध है। उदाहरणार्थ जल अर्पण करने का पद्य
शुचि छोरदधिसम नार निर्मल, कनकझारी में भरौ। संसार पार उतार स्वामी, जोरकर बिना करौं । सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुरि कैलाश कों
पूजों सदा चौबीस जिन, निर्वाणभूमि निवास कों।' इस काव्य में हरिंगोता छन्द और उपमा अलंकार के द्वारा शान्ति रस आत्मशान्ति को प्रदर्शित करता है।
श्री चन्द्रप्रभजिनपूजा
कवि श्री जिनेश्वरदास जी ने श्री चन्द्रप्रभजिनपूजा-काव्य का निर्माण भक्तिवश किया है। इस पूजा-काच्च में अनेक छन्दों में विरचित तेतीस काव्यों का निर्माण कर
आठवें चन्द्रप्रभ तीर्थंकर के गुणों का सुन्दर वर्णन किया है। स्थापना का प्रथम काब्ब प्रस्तुत है।
चारितचन्द्र चतुष्टयमण्डित चारिप्रचण्ड अरि चकचूरे चन्द्रविराजित चवर्षे यह चन्द्रप्रभा सम है अनुपूरे । चारू चरित्र चकोरन के चित चारन चन्द्रकला बहु रें
सो प्रभु चन्द्र समन्त गुरुचित चिन्तत ही सुख होय हजूर __ इस काव्य में इकतास मात्रा वाला सवैचा छन्द अंकित है, इसमें अनुप्रास-उपमा-रूपक और अतिशमोक्ति अलंकारों के द्वारा शान्तरस प्रवाहित होता है।
श्रीगोमटेश बाहुबली जिनपूजा
वर्तमान कवि श्री नीरज जैन ने, श्रवणबेलगोला तीर्थक्षेत्र (कर्नाटक) में, सन् 1981 फरवरी मासीय, श्री गोमटेशप्रतिष्ठापना सहस्राब्दि महोत्सव के साथ सम्पन्न महामस्तकाभिषेक की पुण्य वेला में, श्री गोमटेश बाहुबली जिनपूजा-काव्य के माध्यम से, अपने मानससरोवर से भक्तिरस की गंगा को प्रवाहित किया था। यह काव्य रस, अलंकारपूर्ण एवं विविध रभ्य छन्दों में निबद्ध है और बाईस पद्यों में समाप्त होता है। उदाहरणार्थ स्थापना का प्रथम काव्य प्रस्तुत किया जाता है
1. जिनेन्द्रपूजन पणिमाला, पृ. 415419 2. परमात्मपूजासंग्रह : सं. सुभाषजन, प्रका.-दि. जैन साहित्य प्रधार समिति, नया बाजार, लश्कर
ग्वालियर. पृ. 50-55 सन 195]
212 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन