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आदेदेव के पुत्र, भरत के भ्रात, सुनन्दानन्दन प्रथमपथिक शिवपथ के, तुमको युग का शतशत बन्दन। वाहुबली जिनराज नयनपथगामी तुम्हें बनाऊँ
गोमटेश के श्रीचरणों में बारबार शिर नाऊँ। आधुनिक छन्द में निबद्ध यह काव्य अनुप्रास, परिकर और रूपक अलंकारों के प्रभाव से भक्तिरस की वर्षा कर रहा है। जल अर्पण करने पद्य
आदिकाल से जन्ममरण का लगा हुआ काजल है धोने में समर्थ केवल संयम सरिता का जल है। सो जलधार समर्पित करके, निर्मल पदवीं पाऊँ
गोमटेश के श्रीचरणों में बारबार सिर नाऊँ। इस पूजा भी दमा का सिर छ
अमर हुई चामुण्डराय की भक्ति विश्वविख्याता रूपकार को कला, विन्ध्य की शिला, गल्लिका माता। 'भोरल' ऐसे धीरज धारी की बलिहारी जाऊँ
गोमटेश के श्री चरणों में वारबार सिर नाऊँ।' इन काच्या में आधुनिक छन्द और यमक, अनुप्रास, रूपक एवं अतिशयोक्ति अलंकार शान्तरस की उछाल रहे हैं।
चाँदनपुर महावीर पूजा __इंसवीव श्रीसवीं शती के स्व. कवि पुरनमान द्वारा विरचिंत इस पूजा-काव्य में अतिशय क्षेत्र चाँदनपुर महावीर जी के भगवान महावीर के अनुपम गुण का कीर्तन किया गया है। इस पूजा-काध्य में जनक छन्दों में रचित कुल 37 पद्य हैं जो चाँदनपुर महावार क्षेत्र राजस्थान के ऐतिहासिक चमत्कार का व्यक्त करते हैं। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी-श्री महावीर जयन्ती पर्व पर इस क्षेत्र में वार्षिक मेला का आयोजन होता है। उदाहरणार्थ जल अर्पण करने का पद्य
क्षीरोदधि से भरि नीर कंचन के कलशा, तुम चरणनि देत चढ़ाय, आवागमन नशा ।
1. स्पाद्वाद ज्ञानगंगा, प्रधान सं. गुलाबचन्द्र दर्शनाचार्य, प्र- सुपतचन्द्र शास्त्री, मुरेना, अप्रैल-मई
1981, पृ. 51-54
हिन्दी जैन पूजा-काव्यों में छन्द, रस, अलंकार :: 213