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सामग्री का वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् श्रीऋषभदेव की स्तुति कही गयी, इस स्तुति में मंगलाचरण, पूजा का महत्त्व, ऋषभदेव के गर्भकल्याणक, जन्मोत्सव, कर्मयुग के विविध आविष्कार, राज्य द्वारा प्रजा का संरक्षण, दीक्षाकल्याणक, ज्ञान कल्याणक, दिव्य उपदेश, मोक्ष कल्याणक और परम आशीर्वाद का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। उदाहरणार्थ पूजा या स्तुति का महत्त्व प्रदर्शक पद्य :
यस्यान्त्रनामजपतः पुरुषस्य लोके, पापं प्रयाति विलयं क्षणमात्रतो हि । सूर्योदये सति यथा तिमिरस्तथास्तं वन्दामि भव्यसुखदं वृषभं जिनेशम् ॥' इस काव्य में दृष्टान्तालंकार द्वारा शान्तरस प्रवाहित होता है । शासनकला का आविष्कार तथा प्रजासंरक्षण
षट्कर्म युक्तिमवदर्श्य दयां विधाय सर्वाः प्रजाः जिनधुरेण वरेण येन । संजीविताः सविधिना विधिनायकं तं बन्दामि भव्यसुखदं वृषभं जिनेशम् ॥ विविधविभवकर्ता, पापसन्तापहर्ता शिवपदसुखभोक्ता स्वर्गलक्ष्म्यादिदाता | गणधर मुनिसेव्यः सोमसेनेन पूज्यः वृषभजिनपतिः श्रीं वांछितां में प्रदद्यात् ॥ दीर्घायुरस्तु शुभमस्तु कीर्तिरस्तु सद्बुद्धिरस्तु धनधान्यसमृद्धिरस्तु । आरोग्यमस्तु विजयोस्तु महोस्तु पुत्रपौत्रोद्भवोस्तु तव सिद्धिपतिप्रसादात् ॥
द्वितीय भक्तामरमण्डल पूजा
यह पूजा भी आचार्य श्री सोमसेन के द्वारा विरचित है, इसका इतिहास पूर्व की तरह है। इसमें कुल 76 पद्य हैं जिनमें श्री ऋषभदेव की स्तुति के पाँच पथ बसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं। नी द्रव्य अर्पण करने के नौ पद्य भुजंगप्रयात केन्द में रचित हैं । अन्त में जयमाला के दस पद्य भुजंगप्रयात छन्द में विरचित हैं। भूमिका को छोड़कर शेष पद्य पूर्व पूजा के समान हैं। उदाहरणार्थ स्तुति का प्रथम पद्य कल्याण कीर्तिकमलाकमलाकरं हि, संचर्चिदुज्ज्वलमहः प्रकटीकृतार्थम् । उच्चैः निधायहृदिवीरजिनं विशुद्धयै शिष्टेष्टमादिपरमेष्टमहं प्रवक्ष्ये |
। श्रीभक्तामरपूजाविधान सं. मो. ला. शास्त्री जबलपुर पृ. 26-1001
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2. दि. जैन जन संग्रह सं. राजकुमार शास्त्री इन्दौर पू. 75
15 न पूजा काव्य एक चिन्तन