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( एक पद्य से लेकर 32 पद्य तक कहना चाहिए)
अजराय नमस्तुभ्यं नमस्तेऽतीतजन्मने । अमृत्यवे नमस्तुभ्यमचलायाक्षरात्मने ॥ पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिए।
अलमास्तां गुणस्तोत्रमनन्तास्तावकाः गुणाः । त्वां नामस्मृतिमात्रेण पर्युपासिसिषामहे || एवं स्तुत्वा जिनं देवं, भक्त्या परमया सुधीः । पठेदष्टोत्तरं नाम्नां सहसं पापशान्तये ॥
ओं ह्रीं श्रीं अई परकहाउ अन्य अनतर अनतर संवौषट् ( पुष्पक्षेपण) । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः इति स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधिकरण ( उच्चस्थान पर पुष्पों को क्षेपण करना चाहिए)
जल अर्पण करने का पद्य ( वसन्तलिका छन्द)
कर्पूरपूरवरमिश्रितचारुनीरैः तीर्थोदकैः कनककुम्भभृतैः सुपूतैः । श्रीमज्जिनेन्द्रमहमिन्द्रनरेन्द्रपूज्यं सम्पूजयामि भवसम्भवतापशान्त्यै ॥ मन्त्र-ओं ह्रीं श्रीमदादि अष्टाधिकसहस्रनामधारकजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
वर्गन्धतन्दुललतान्तच रुप्रदीपैः धूपैः फलैः विरचितैः शुभहेमपात्रैः । सम्पूजयामि जिननाथमहं सुभक्त्या त्रैलोक्य मंगलकर सततं महाऔंः ॥
ओं ह्रीं श्रीमदादि अष्टाधिक सहस्रनामधारकजिनेन्द्राय अनपद प्राप्तये अपं निर्वपामीति स्वाहा |
इस सहस्रनामस्तोत्र में ग्यारह शतक हैं। अन्तिम शतक में जिनेन्द्र परमात्मा के सहस्रनामों की महिमा का वर्णन है। प्रत्येक शतक का पाठ करने के पश्चात् अर्प अर्पण किया जाता है। पाँचवें शतक के लिए अर्ध समर्पण इस प्रकार है :
चारुनीरगन्धशालितन्दुलप्रफुल्लर्क : सच्चरुप्रदीपधूपसत्फलैः महाघंकैः । देवदेववीतरागसं श्रीवृक्षकं शतं
अर्चयामि पापतापनाशनं सुखप्रदम् ॥
ह्रीं श्रीवृक्षादिशतनामधारक जिनेन्द्राय अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ।
इस पद्य में श्रीवृक्षलक्षण रुचिर आदि शतनाम के धारक परमात्मा के लिए
188 :: जेग पूजा का एक चिन्तन