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मुनिजलजमृणालं भवभयशालं शिवउरमालं सुकुमाल, भक्तिरुषतमालं, त्रिभवनपालं, नयनविशालं गुणमालं ॥' कवि धानतरायकृत श्रीपार्श्वनाथ स्तोत्र - कुछ रम्य छन्द
नरेन्द्र फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं शतेन्द्रं सु पूर्जे नमैं नाय शीशं । मुनीन्द्रं गणेन्द्रं नमीं जोड़ हाथं नमो देवदेवं सदा पार्श्वनाथ || महामोह अन्धेर को ज्ञानमानुं महाकर्मकान्तार को दवप्रधानं । किये नागनागिन अधोलोकस्वामी, हरी मान तुम दैत्यको हो अकामी ॥ तुम्हीं कल्पवृक्षं तुम्हीं कामधेनुं, तुम्हीं दिव्यचिन्तामणि नाग एनं । पशूनर्क के दुःख तें तू छुड़ावे, महास्वर्ग में मुक्ति में तू बसावे ॥ महाचीर को बन को भय निवारे, महापौन के पुंजतें तू उबारै । महाक्रोध की अग्नि को मेघधारा, महालोभ- शैलेश को बज्र भाराश
श्रीवृन्दावनकविरचित नामावलीस्तोत्र के कुछ रम्य छन्द
नयमालिनी छन्द - 16 मात्रा
शुद्धबुद्ध अविरुद्ध नम
शिद्धतिद्धवृद्ध नमस्ते । वीतराग विज्ञान नमस्ते, चिदूविलास धृतध्यान नमस्ते ॥ भव्यभवोदधितार नमस्ते, शर्मामृत सित सार नमस्ते । दरशज्ञानसुखवीर्य नमस्ते चतुराननधर धीर नमस्ते ॥ ( कल्लमल्ल जिनछल्ल)
श्रीकमलकुमार शास्त्री द्वारा रचित भक्तामरस्तोत्र के कुछ रम्य काव्य
सौ सौ नारी सौ सौ सुत को जनती रहती सौ सौ ठौर तुम-से सुत को जनने वाली जननी महती क्या है और । तारागण को सर्वदिशाएँ घरें नहीं कोई खाली, पूर्वदिशा ही पूर्णप्रतापी दिनपति को जनने वाली ॥ ज्ञान पूज्य है अमर आप का इसीलिए कहलाते बुद्ध भुवनत्रय के सुखसंवर्धक अतः तुम्हीं शंकर हो शुद्ध मोक्षमार्ग के आद्यप्रर्वतक, अतः विधाता कहें गणेश तुम सम अवनी पर पुरुषोत्तम और कौन होगा अखिलेश || 1. बनारसीवितास बम्बई प्र. सं. सम्पादक नाथूराम प्रेमी, पृ. क्रमशः 15-170-195
जैन पूजा - काव्य के विविध रूप : 117