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अज्ञानादितमीविनाशनकरै: कर्पूरदीप्त: वरैः कर्पासस्य विवर्तिकाग्रविहितैः दीपैः प्रभाभासुरैः । विद्युत्कान्तिविशेषसंशयकरैः कल्याणसम्पादक: कुर्यामार्तिहरार्तिकां जिन विभो ! पादाग्रतोयुक्तितः ॥
मन्त्र - ओं ह्रीं परमशान्तिविधायकाय हृदयस्थिताय श्री ऋषभजिम चरणाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामि स्वाहा ।
इस पद्य में रूपक, भ्रान्तिमान, स्वभावोक्ति अलंकारों के द्वारा शान्त रस चमकता है।
अर्घ्य (अष्टद्रव्यों का समूह ) अर्पण करने का पद्य :
नीरैश्चन्दनतण्डुलैः
सुसघनैः पुष्पैः प्रमोदास्पदैः नैवेद्यः नवरत्नदीपनिकरैः, धूमैस्तथा धूपजैः । अयैः चारुफलैश्च मुक्तिफलदं कृत्वा जिनांघ्रिद्वये भक्त्या श्रीमुनिसोमसेनगणिना, मोक्षो मया प्रार्थितः ॥ मन्त्र - ओं ह्रीं परमशान्तिविधायकाय हृदयस्थिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय अर्धपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामि स्वाहा |
श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ पूजा
जिस प्रकार मन में विचार करने मात्र से, चिन्तामणि के द्वारा मानवों को इष्टमनोरथ की सिद्धि होती है उसी प्रकार तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ के पूजन-भजन- चिन्तन और स्तवन करने से मानवों को इष्टमनोरथ की सिद्धि होती है इसलिए इन तीर्थंकर की प्रसिद्धि चिन्तामणि पार्श्वनाथ के नाम से विश्व में देखी जाती है। महाकवि सोमसेन ने संस्कृत में बीस पद्यों की रचनाकर, श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ के विषय में भक्तिरस की गंगा को प्रवाहित किया है। इस पूजा के प्रथम द्वितीय पद्य अनुष्टुप छन्द में, सं. 3 से सं. 11 तक पंचचापरछन्द में, सं. 12 से 20 तक सरधरा छन्द में रचित हैं। पद्यों की रचना शब्द तथा अर्थ की अपेक्षा बहुत सुन्दर है। उदाहरणार्थ स्थापना के प्रथम द्वितीय पद्य :
श्रीपार्थः पातु वो नित्यं, जिनः परमशंकरः । नाथः परमशक्तिश्च शरण्यः सर्वकामदः || सर्वविघ्नहरः सर्वः सर्वसिद्धिप्रदायकः । सर्व सत्त्वहितोयोगी, श्रीकारपरमार्थदः ॥
स्थापना मन्त्र - ओं ह्रीं श्रीं अहं श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ । अत्र अवतर अवतर
1. श्री दि. जैन पूजनसंग्रह, सं. पं. राजकुमार शास्त्री, प्र. संयोगितागंज इन्दौर, प्रथम सं., पृ. 43-461
संस्कृत और प्राकृल जैन पूजा काव्यों में एन्द... 195