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(1) अरहन्त, (2) सिद्ध, (8) आचार्य, (4) उपाध्याय, (5) साधु, (6) अरहन्तमंगल, (7) सिद्धमंगल, (B) साधुमंगल, (9) कवलज्ञानी प्रणीत धर्ममंगल, (10) लोकोत्तम अरहन्त, (11) लोकोत्तमसिद्ध, (12) लोकोत्तम साधु, (13) लोकोलम कवल ज्ञानी प्रणीतधर्म, (14) अरिहन्तशरण, (15) सिद्धशरण, (16) साधुशरण, (17) केवलज्ञानी प्रणीतधर्मशरण। इस सिद्धान्त रिखाचित्र में उक्त सब ही वीतरागदेयों के नाम वीजाक्षरमन्त्रों के साथ उत्कीर्ण रहते हैं। इन सब यन्त्रों के रेखाचित्र इस पुस्तक के अन्त में लिखित परिशिष्ट में व्यक्त किये जाएंगे।
प्रतिष्ठा, गृहशुद्धि, विवाह, शिलान्यास, खातमुहूर्त, शान्तिजप, विश्व शान्तिहवन, पूजाविधान आदि प्रमुख कार्यों में सिद्धयन्त्र आदि यन्त्रों की पूजा का नियम प्रतिष्ठाग्रन्थों में देखा गया है। इसलिए सद्गृहस्थ अपने निवासगृहों में शान्तिजप, हवन, विवाह, गृहप्रवेश आदि शुभकार्यों के हेतु सिद्धयन्त्र (विनायक) स्थापित करते हैं, कार्यसमाप्त हो जाने पर श्रीमन्दिर में पुनः स्थापित कर देते हैं। इन यन्त्रों की पूजा भी पाँच प्रकार से की जाती है-(1) अभिषेक, (2) स्थापना, (3) अष्टद्रव्यों से पूजन, (4) शान्ति, (5) विसर्जन । प्रतिमा का प्रतिनिधि होने से यन्त्र भी प्रतिमा की तरह पूज्य माना जाता है। इस यन्त्र की भी प्रतिष्टा होती है।
इस सिद्धयन्त्र-पूजा में कुल अड़तीस पद्य हैं। पद्य सं. 1 वसन्ततिलका छन्द में, पध सं. 2 अनुष्टुप छन्द में, पद्य सं. 3 से 10 इन्द्रवजा छन्द में, पद्य सं. 11 शार्दूलविक्रीडित छन्द में, पद्म सं. 12 से 16 तक वसन्ततिलका छन्द में, पद्य सं, 11 से सं. 28 तक अनुष्टुप छन्द में, पद्य सं. 29 वसन्ततिलका में, पद्य सं. 30 अनुष्टुप में, पद्य सं. 31 से 36 वसन्ततिलका में, पद्य सं. 37 पालिनी छन्द्र में और पद्य सं. 38 अनुष्टुप छन्द में विरचित है। उदाहरणार्य यन्त्र के अभिषेक का प्रथम पद्य :
स्नात्वा शुभाम्बरधरः कृतयलयोगात् यन्त्र निवेश्य शुचिपीठवरेभिषिचेत् ।
ओं भूर्भुवः स्वरिह मंगलयन्त्रमेतत्
विघ्नौघवारकमहं परिषिंचयामि ॥' यन्त्रस्थापना का पद्म
परमेष्ठिन् ! जगत्त्राण-करणे मंगलोत्तमशरण इह तिष्ठतु में सन्निहितोस्तु पावनः ॥
सारांश-हे परमेष्टिदेव! जगत् की रक्षा करने में मंगल उत्तम शरण, हे परम पवित्र! यहाँ मेरे हृदय में विराजिए और सन्निकट हो जाइए।
1. श्री दि. जैन पूजन संग्रह, सं. राजकुमार शारनी. पृ. 17-51 ।
संस्कृत और प्राकृत बैन पूजा काव्यों में छन्द... :: 11