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मंगल के भेद-प्रभेद
__ मंगल के सामान्यतः दो भेद हैं-(1) द्रव्यमंगल, (2) भावमंगल । नमस्कार रूप वचन कहते हुए जो मन-वचन-काय से, हस्तयुगल की अंजलि बाँधकर मस्तक से लगाकर, मस्तक झुकाते हुए प्रणाम करना द्रव्यमंगल है और पान कषाय का त्याग करते हुए नम्र भाव से परमात्मा के गुणों का स्मरण करना भावमंगल है।
___ मंगल के दूसरी शैली से चार भेद हैं-(1) अकृत्रिमचैत्यालय, निर्मित मन्दिर, ग्रन्थ, गुरु को नमस्कार करना द्रव्यमंगल है। (2) गिरनार, सम्मेदशिखर, राजगृह, चम्णपुर आदि तीर्थक्षेत्रों को नमस्कार करना क्षेत्रमंगल कहा जाता है। (3) कालमंगल-जिस काल में तीर्थकर या महान् आत्मा कल्याणक-महोत्सव पूर्णज्ञान तथा मुक्ति आदि उच्च पदों को प्राप्त होता है उस काल में उनको नमस्कार करना कालमंगल कहा जाता है। (4) भावमंगल-मंगलशास्त्र को जाननेवाला कोई पुरुष परमात्मा के गुणों का स्मरण करते हुए जिस समय नमस्कार, शुद्ध भावपूर्वक करता है वह भावमंगल कहा जाता है । ये व्यवहार-दृष्टि से मंगल के चार प्रकार कहे गये हैं।
प्रचलित लोक-व्यवहार (निक्षेप) की दृष्टि से मंगल के अन्य चार प्रकार भी होते हैं--[1) नाममंगल-जाति द्रव्य गुण और क्रिया के बिना किसी वस्तु का या मनुष्य का 'पंगल' इस नाम के निश्चित करने को नाममंगल करते हैं, जैसे किसी पालक का नाम मंगलराम या मंगलदास रख दिवा जाए तो वह नाममंगल है। (2) स्थापनामंगल-लेखनी आदि से लिखित चित्र में, निर्मित पूर्ति में अथवा अन्य किसी वस्तु में बुद्धि से उसमें मंगलरूप जीव के, महात्मा या परमात्मा की 'यह वही है' इस प्रकार की स्थापना करना स्थापनामंगल है, जैसे महावीर की मूर्ति में महावीर की स्थापना और रामचन्द्र की मूर्ति में रामचन्द्र की स्थापना कर उसको नमस्कार करना। (3) द्रव्य निक्षेपमंगल-भविष्य में पूर्ण ज्ञान के अतिशय को या मुक्तिदशा को प्राप्त होने के लिए सन्मुख महात्मा को अथवा भूतकाल में मुक्ति प्राप्त जीव को वा पूर्ण ज्ञान प्राप्त पुरुष महात्मा को वर्तमान में नमस्कार करना द्रव्यममल कहा जाता है। इस भेद में भूतकाल और भविष्यकाल की मुख्यता लेकर उस पूज्य आत्मा को नमस्कार किया जाता है। (4) भावनिक्षेपमंगल-केवलज्ञान प्राप्त अथवा मुक्ति दशा को प्राप्त वर्तमान पर्याय के सहित अरहन्त एवं सिद्ध भगवान की आत्मा को भावनिपमंगल कहते हैं।
इस प्रकार निक्षेप (प्रचलित लोक-व्यवहार) की अपेक्षा से भी मंगल के चार भंद कहे गये हैं।
संस्कृत मंगलकाच्यों का दिग्दर्शन
जैनदर्शन में जिस प्रकार स्तोत्र या स्तवन-काव्य प्रचुर संख्या में पाये जाते हैं
122 जन पूजा-काच : एक चिन्तन