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अर्थात् मैं उत्तम केशर और कपूर से सुगन्धित, गंगानदी के जल की निर्मलधारा से, सम्पूर्ण मंगल और इच्छित पदार्थों को देनेवाले महान् बास तीर्थकरों की पूजा करता हूँ ।
अन्त में प्राकृत जयमाला के छह काव्यों में बीस तीर्थकरों का वर्णन है।
कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालयों का सामूहिक पूजन
इस सामूहिक पूजन में तीन लोक के कृत्रिम ( बनाये गये) और अकृत्रिम (मनुष्य तथा देवों के द्वारा नहीं बनाये गये अर्थात् अनादिनिधन ) जिन चैत्य (प्रतिमा) तथा चैत्यालयों (मन्दिरों) की अर्चा है, जिसका प्रथम पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में रचित है, द्वितीय पद्य उपजाति छन्द में रचित है, तृतीय पद्म मालिनी छन्द में चतुर्थ पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में, पंचम पद्य सन्धरा छन्द में छठा पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में निबद्ध है। अन्त में प्राकृत गद्य में कायोत्सर्गविधि अर्थात् खड्गासन होकर नव बार णमोकार मन्त्र पढ़ने की विधि है।
प्रथम पद्म का तात्पर्य इस प्रकार है-तीन लोक के कृत्रिम तथा अकृत्रिम सुन्दर विशाल चैत्यालयों की तथा भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क एवं कल्पवासी देवों के सुन्दर चैत्यालयों की हम सदा वन्दना करते हैं, और दुष्ट अष्ट कर्मों की शान्ति कं लिए पवित्र जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवैद्य, दीप, धूप तथा फल के द्वारा उनकी शुद्धभाव से पूजा करते हैं।
संस्कृत पूजा - काव्य में रस छन्द और अलंकार योजना सिद्धपूजा ( द्रव्याष्टक )
इस पूजा - प्रकरण में सिद्ध परमात्मा का अष्टद्रव्यों द्वारा पूजन कहा गया है। इसमें कुल पच्चीस पद्य हैं। प्रथम पद्य, ग्यारहवाँ पद्य, चौदहवाँ पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द में, दूसरा तथा तेरहवाँ पद्य अनुष्टुप छन्द में तीन से दश तक तथा बारहवाँ पद्य वसन्ततिलका छन्द में पन्द्रह से लेकर चौबीस तक दश पद्य मौक्तिक दामचन्द में, और अन्तिम पच्चीसवाँ पद्य मालिनी छन्द में रचित है। उदाहरणार्थ पय सं. 8 और उसका भावसौन्दर्य इस प्रकार है :
आतंक शोकभयरोगमदप्रशान्तं निर्द्वन्द्वभावधरणं महिमानिवेशम् । कर्पूरवर्तिबहुभिः कनकावदातैः दीपैर्यजेरुचिवरैः वरसिद्धचक्रम् ॥'
जिन्होंने जातंक, शोक, भय, रोग और अभिमान को नष्ट कर दिया है, जो अन्य विकारभाव से रहित हैं और महत्त्व के स्थान हैं उन श्रेष्ठ सिद्धभगवन्तों की कपूर
1. ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृ. 73791
संस्कृत और प्राकृत जैन पूजा काव्यां में छन्द... : 169