________________
•
श्रुतभक्ति- इस पाठ में श्रुतज्ञान अथवा शास्त्रों की भक्ति का वर्णन है । इसमें नवदोहा शान्तरस को प्रवाहित करते हैं, उदाहरणार्थ कुछ दोहे
चारित्रभक्ति - इस भक्ति पाठ में दश दोहों के माध्यम से चारित्र ( सदाचार ) के विषय में भक्तिपूर्वक शान्तरस की धारा बहायी गयी है। उदाहरणार्थ दोहा
तीन लोक के जीव का हित है धर्म सुजान । सन्मति कहते हैं उसे, नमो उन्हें धर ध्यान || पाँच भांति चारित्र को कहते वीर प्रकाश सर्व कर्म के नाश हित, घाति कर्म का नाश ॥ पंच महाव्रत हैं कहे यहाँ अहिंसा आदि । कहीं लमितियाँ पाँच हैं, पँच अक्षरोधादि ॥
अन्याय, अत्याचार तथा पापों से आत्मा की सुरक्षा करना 'गुप्ति' कहा जाता हैं। इसके तीन प्रकार हैं- ( 1 ) मनोगुप्ति ( मन को वश में करना या मौन धारण करना ), ( 2 ) वचनगुप्ति (वचन को वश में करना या हितमितप्रिय सत्यवचनों का प्रयोग करना ), ( 3 ) कायगुप्ति ( शरीर का वशीकरण या स्व पर उपकार के कार्य करना), इस सब चारित्र या संयम के साधनों से दोष दूर होते हैं, आत्मशुद्धि होती हैं, स्वर्ग एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है।
योगभक्ति - इस भक्तिपाठ में उन मुनिराजों की भक्ति की गयी जो मनसा वाचा कर्मणा मुक्ति प्राप्त करने के लिए श्रद्धा, ज्ञान एवं चारित्र की समीचीन साधना करते हैं जो अन्तरंग और बहिरंग तप की साधना करते हैं, वर्षा, शीत और ग्रीष्म ऋतु के कष्टों को शान्त भाव से सहन करते हैं। जो अहर्निश धार्मिक कर्तव्यों की प्रतिपालना करते हैं। इसमें रम्य तेईस दोहों के माध्यम से शीतल भावों की सरिता बहती है। उदाहरण के लिए कुछ छन्दों का प्रदर्शन
तत्त्वभूतगुणयुक्त जो, गुणधर हैं अनगार। ' अभिनन्दन उनको करूँ, हाथ जोड़ मनधार ॥ आठों मद से रहित हैं, आठ कर्म से मुक्त । मोक्षपदामृत को पिएँ, नयूँ अष्टगुणयुक्त ||
आचार्यभक्ति - इस भक्ति प्रकरण में साधुसंघ के आचार्य महात्मा के गुणों का अभिनन्दन किया गया है, आचार्य महाराज, संघ के साधुओं को दैनिक चर्या पालन कराने में अनुशासन रखते हैं, आत्मशुद्धि के लिए स्वयं तप की साधना करते और कराते हैं। अनशन आदि बारह प्रकार का तप उत्तम क्षमा आदि दशधर्म,
1. श्रीस्तोत्रपाठ संग्रह, योगभक्ति, पृ. 28-30
जैन पूजा - काव्य के विविध रूप : 143