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स्थापना। (1) मूल पदार्थ की तरह आकारवाले पदार्थ में 'वह वही है' इस प्रकार मूल पदार्थ की कल्पना करना साकार स्थापना है, जैसे महावीर की प्रतिमा में महावीर भगवान की स्थापना करना (2) मिन्न आकारवाले पदार्थ में मूल पदार्थ की कल्पना करना निराकार स्थापना है जैसे शतरंज की मोटों में बादशाह, वजीर, बेगम आदि की कल्पना करना अथया पुष्य में देवों की कल्पना करनी। यहाँ पर आहवान, स्थापना सन्निधिकरण के समय जो पुष्प उच्च स्थान पर रखे जाते हैं वह निराकार स्थापना है। उन पुष्पों को उच्च स्थान पर रखने का यही ध्येय है कि निराकार स्थापना से देव की पूज्यता का सम्मान करना है इसलिए ही उनको सुरक्षित स्थान पर विसर्जित किया जाता है। जिस देव की पूजा करना हो, उस देव का ही आह्वानन, स्थापन तथा सन्निधीकरण किया जाता है। ऊपर श्री महावीर तीर्थंकर के विषय में तीनों विधियाँ दर्शायी गयो हैं इसी प्रकार अन्य पूज्य देव के विषय में भी समझना चाहिए। आह्वान, स्थापन एवं-सन्निधिकरण के विषय में इतना विशेष और भी जानना चाहिए कि पूज्य परमदेव पन्दिर में या मन-मन्दिर में न जाते हैं, न बैठते हैं, न जाते हैं किन्तु मन में स्मरण करना ही आना है, मन की स्थिरता हो वैठना है और स्मरण को समाप्त करना ही देश का विसर्जन करना या जाना है। इस पूजा में बिनयपूर्वक ही सब क्रिया की जाती है, महान् पूज्य अतिथि अर्हन्तदेव का गुणकीर्तन पूर्वक आदर किया जाता है इसलिए इस पूजाकर्म को अतिथिसविभागवत के अन्तर्गत कहा गया है। सन्निधिकरण में पूज्य तथा पूजक की निकटता होने पर पूजक, पूज्य के प्रति उनके गुणों को तथा पूजाद्रव्य के वर्णन को करता हुआ पूजा कर्तव्य को आठ द्रव्यों के अर्पण के साथ सम्पन्न करता है। यही क्रम समस्त पूजाकर्म में समझना चाहिए।
संस्कृत-प्राकृत भाषा में संयुक्त पूजन पूजाकर्म का सर्वत्र यह नियम है कि पहले पुष्पक्षेपणपूर्वक आह्वान, स्थापना और सन्निधिकरण होता है, पश्चात् छन्द एवं मन्त्र का उच्चारणपूर्वक क्रमशः जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल-ये 8 द्रव्य अर्पित किये जाते हैं, इसके बाद आठ द्रव्यों का समूह रूप अर्घ्य और अन्त में जयमाला के बाद अर्य अर्पित किया जाता है, सबसे अन्त में छन्द पढ़ते हुए आशीर्वाद पुष्प अर्पित किये जाते हैं।
सबसे प्रथम संस्कृत तथा प्राकृत भाषा में देवशास्त्रगुरु महापूजा देखी जाती है जिसका प्रथम श्लोक खग्धराछन्द में, द्वितीय श्लोक हरिणीप्लुता छन्द में, तृतीयश्लोक शार्दूलविक्रीडितछन्द में, चतुर्थ श्लोक अनुष्टुप् छन्द म, पंचम श्लोक से तेरहवें श्लोक तक नौ श्लोक उपजाति छन्द में, चौदहवां काव्य शार्दूलविक्रीडितछन्द में, पन्द्रहवें काव्य से तेईसवें श्लोक तक नौ श्लोक अनुष्टुप छन्द में रचित हैं। कुल 23 श्लोक हैं। इनमें से भगवती सरस्वती (जिनवाणी) के आह्वान, स्थापन,
LAR:: जेन पूजा काव्य : एक चिन्तन