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वसन्ततिलकाछन्द
स्वस्ति त्रिलोकगुरवे जिनपुंगवाय, स्वस्तिस्वभावमहिमोदयसुस्थिताय । स्वस्ति प्रकाशसहजोर्जितदृङ्मयाय, स्वस्ति प्रसन्नललिताद्भुतवैभवाय ॥ स्वस्त्युच्छलद्विमलबोधसुधाप्लवाय, स्वस्ति स्वभावपरभावविभासकाय। स्वस्ति त्रिलोकविततेकचिद्गमाय, स्वस्तित्रिकालसकलायतविस्तृताय । द्रव्यस्य शुद्धिमधिगम्य यथानुरूपं, भावस्य शुद्धिमधिकामधिगन्तुकामः । आलम्बनानि विविधान्यवलम्ब्यवल्गन, भूतार्थयज्ञपुरुषस्य करोमि यज्ञ ॥ अहन् पुराणपुरुषोत्तमपावनानि, वस्तूम्यनूनमखिलान्यययेक एच । अस्मिन् ज्वलद् विपलकेवलवोधवह्नौ, पुण्यं समग्रमहमेकमना जुहोमि || द्वितीय-स्वस्तिवाचन
श्री वृषभो नः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अजितः । श्री सम्भवः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अभिनन्दनः । श्री सुमतिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री पद्मप्रभः । श्री सुपार्श्वः स्वस्ति, स्वस्ति श्री चन्द्रप्रभः ॥ श्री पुष्पदन्तः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीशीतलः । श्री श्रेयान् स्वस्ति, स्वस्ति श्री वासुपूज्यः ॥ श्री विमलः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अनन्तः । श्री धर्मः स्वस्ति, स्वस्ति श्री शान्तिः ॥ श्री कुन्थुः स्वस्ति, स्वस्ति श्री अरनाथः । श्री मल्लिः स्वस्ति, स्वस्ति श्री मुनिसुव्रतः ॥ श्री नमिनाथः स्वस्ति, स्वस्ति श्री नेमिनाथः ।
श्री पाश्वनाथः स्वस्ति, स्वस्ति श्री वर्धमानः ॥' इस स्वस्तिवाचन (मंगलपाठ) को बोलते हुए हम पुष्पांजलि क्षेपण करते हैं। इसके पश्चात् परमऋषियों के तृतीय स्वस्तिवाचन के दशपद्यों को मंगलपुष्पों को छोड़ते हुए पढ़ना चाहिए।
इस प्रकार पूजन के प्रारम्भ में स्वस्तिवाचन तथा मंगलपाठ पढ़ना अनिवार्य है इससे आत्माशुद्धि के साथ विश्व के लिए मंगलकामना की जाती है, इस पाठ से कृतज्ञता का भाव प्रकाशित होता है।
इस सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन से यह सिद्ध होता है कि परमात्या या परमेष्ठी का
1 ज्ञानपीट पूजांजलि, पृ. 311 2. तथैव, पृ. ।
154:: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन